मोबाइल नर नारायण : मोबाइल हाथ में लेकर एकला चलो रे !

चलते पंखे की आवाज़ आपको बीतते हुए समय का एहसास कराती है । घड़ी की सुइयों को रेंगते देखकर मन में गिंडोले सरकने लगते हैं । बहता हुआ नल अगर मटके या बाल्टी को भर रहा है तो समृद्धि का , पर अगर फिजूल पानी खर्च हो रहा है तो बरबादी का भाव देता है । टपकते नल के बारे में न पूछें – टपूकड़े को लोगों ने डाकू की दस्तक, सेंधमारी की आहट, यम की पदचाप और भूत का नाच – सब कुछ समझा है और नींद, चैन और ज़िंदगियाँ गंवाई हैं । चिड़िया की कूक संदेश भेजती है कि इस कमरे के बाहर भी दुनिया है । सड़क पर बहता यातायात जीवन के व्यापार और उसकी रफ्तार का द्योतक है । धक-धक करता हृदय चोरी हो जाने की संभावना से भयभीत है । अब तक चुप-चाप बैठा कौवा भी कांव-कांव करने लगता है ।

फोन की घंटी बजने लगी । यानि मेरा नंबर कमसकम एक मोबाइल फोन पर तो चमका । ये किसने मेरी तनहाई के दरवाजे पर खटखटाया ? संभ्रांत वर्ग के लोग अपने मोबाइल को अधिकतर शांत मोड पर रखते हैं । रिंगटोन बंद रखने की वजह से उन्हें आते हुए कॉल का आभास फोन स्क्रीन के प्रकाशमय होने से ही हो पाता है । चूंकि प्रकाश की गति ध्वनि से बहुत अधिक है, तो फोन को शांत रखकर और एकटक देखते रहने से आप इनकमिंग कॉल को जल्दी भाँप सकते हैं ?  यहाँ यह भी ज़िक्र कर देना आवश्यक है कि डायल टोन अथवा कालर ट्यून का बजना शाश्वत सत्य है, ब्रह्म की ॐ ध्वनि की तरह । तात्पर्य यह कि कॉल करने वाले की शांति भंग होना अवश्यंभावी है, रिसीव करने वाला भले अपने ईकोसिस्टेम में कुछ कोलाहल कम कर सकता है ।

“आपका फोन शांत है क्या ?” उसने मुझसे पूछा ।

“हाँ एकदम शांतिप्रिय है , एक विशिष्ट समुदाय की तरह!”

उसका अभिप्राय साइलेंट से था । मैंने शानपट्टी दिखा थी ।

“लेंब्स की तरह? साइलेंस ऑफ दि लेंब्स?”, वह मिमियाया ।

“आप क्या यहाँ-वहाँ की बात करते हो ? क्या सेवारत मोबाइल को कोई शांत कह सकता है ? क्या यह आपको मृत जान पड़ता है ?तब इसकी जगह क्या मेरी जेब में होती ? क्या मैं इसे कूड़े के ढेर में नहीं फेंक देता ।”

“तब क्या मैं इसे ठंडा कह सकता हूँ?”, वह कुछ सार्थक कह जाने की चुल्ल का शिकार जान पड़ता था ।

“लाश की तरह?”, मैं गरजा ।

“निष्ठुर प्रेमिका की तरह!” वह मुस्कुराया । बात मुस्कुराने की थी नहीं ! एकतरफा प्रेम से ज्यादा घिनौना होता है सिर्फ एकतरफा प्रेमालिंगन ।

“जनाब, निष्ठुर मोबाइल नहीं हुआ न, मैं हुआ । उसने अपने आप तो बांग देना बंद नहीं किया ! मैंने ही उसकी मुंडी दबाई है”।

इस तरह मैं और मेरा मोबाइल अक्सर बातें किया करते हैं । मैं उसे अकेले,गुमसुम नहीं बैठने देता । अ-केलापन एक रोग है जिसे केला खाकर भी दूर नहीं किया जा सकता । टेगोर ने कहा था एकला चलो । इकीसवीं सदी के टेगोर बाबा ने खुल कर तो नहीं कहा पर आप समझ लीजिये कि कहा – मोबाइल हाथ में लेकर एकला चलो रे ।

मैं फोन को कभी जेब में नहीं डालता । उसे अकेलापन काटता होगा, यह सोचकर । जेब से गिर भी सकता है । गिर गया तो पुराने मोबाइल की यादें, और नए की कीमत मुझे ही काटेंगी । तनहाई और गिरने के डर से मोबाइल विकिरणें उत्सर्जित करने लगता है । इससे आपके शुक्राणु नष्ट हो सकते हैं और कैंसर का खतरा भी है । इन सब दुष्प्रभावों से बचने हेतु 21वीं सदी के टेगोर बाबा के कहेनुसार – मोबाइल हाथ में लेकर एकला चलो रे ।

यही सोच-सोचकर अपने फोन का नाम मैंने ‘मन की बात’ रख दिया । स्केच पेन से उसपर लिखने लगा तो “मनकी बात” लिखा गया । फिर सोचा फोन बंदर तो नहीं हो सकता, हाँ तोता अवश्य हो सकता है । या फिर घोडा । कहते हैं न – उसने एक घोडा घाल (पाल) लिया । यानि कि उसी के इर्द-गिर्द दिनचर्या स्थापित हो गयी।  अपनी प्रतिष्ठा अपने हाथ में होती है इस लिहाज से आपका मोबाइल आपकी प्रतिष्ठा भी हुआ । पालतू और प्रेमी तो खैर है ही । सवाल उठता है प्रतिष्ठा के कज़िन परंपरा और अनुशासन कहाँ चले गए? प्राचीन परम्पराओं के हिसाब से देवतागण दूर-दूराज़ बैठकर भी मामले सेट कर दिया करते थे । मोबाइल फोन का तो पता नहीं, पर उनके पास कमसेकम दूरभाष अवश्य रहे होंगे । रही बात नवीन परंपरा की, तो मोबाइल इसका आवश्यक हिस्सा है ही । हाँ, मेरा और मेरे फोन का अनुशासन अवश्य कहीं खो गया है । किसी-किसी भद्रजन में वह पाया जाता है या फिर एकदम से प्रकट हो जाता है । ऐसे लोग फोन रखते तो हाथ में ही हैं , पर उसका प्रयोग न्यून कर देते हैं । सोशल मीडिया से ब्रेक ले लेते हैं । फोन नहीं उठाते । स्वयं को एलिनेट और मोबाइल को स्वयं से एण्टेगोनाइज़ कर देते हैं ।

लिखते-लिखते मुझे ये भान नहीं रहा कि मैं अपनी सफाई पेश कर रहा हूँ या मोबाइल की स्थिति का वर्णन । इस दौर में इन सब मामूली बातों का कोई फर्क नहीं पड़ता । मेरा मोबाइल मैं ही हूँ, मैं ही हूँ मेरा मोबाइल । आदमी का मशीनीकरण , और मशीन का सम्पूर्ण आदमीकरण हो चुका है । अब मेरा नाम +91953757$**$ और मोबाइल का नाम मिस्टर पञ्च है, और इसमे किसी को हैरत भी नहीं है । मोबाइल एकला चल रहा है, मेरा अभिन्न हिस्सा बनकर । पहले मैं नर-नारायण हुआ करता था, अब मैं मोबाइल-नर-नारायण हो गया हूँ ।

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