
कहीं से कहीं ले जाता
ये संकरा रास्ता
टहला कर फिर वहीं ले आता
ये संकरा रास्ता
किसी महल के
किसी हरम में
कौन सी पटरानी के
किसी किस नौकरानी के
राज़ छिपाता कभी बतलाता
ये संकरा रास्ता (10)
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दिनभर सोता रात जागता
राजा साहब की राह ताकता
आहट लेता आहें सुनता
खुसफुस करता बातें बुनता
समय संग किलकारी भरता
नवागंतुक का अभिनंदन करता
कोई कक्ष जब क्रंदन करता
मंगल अमंगल, कोई ऋतु हो
युद्ध की या प्रेम घड़ी हो
ले जाने को तत्पर रहता
जाना किसी को कभी कहीं हो
ये संकरा रास्ता
घुमा फिरा कर वापस ले आता
ये संकरा रास्ता (24)
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इस पर चलकर जाने कितने
राजा रानी नौकर चाकर
चार कंधों पर या रथ हांककर
आये धरा पर गए धरा से
वंश बने साम्राज्य ढहे
आए सैलानी और गए
चली हवाएं खिली फिज़ाएँ
काल ने जब तब ली बालायें
फिर भी वहीं खड़ा है रास्ता
कहीं से कहीं ले जाता
या शायद कहीं नहीं ले जाता
ये संकरा का संकरा रास्ता (36)
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