ओ पत्तलकार ! (कविता)

( यह कविता उनको संबोधित करती जो देश की बदनामी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं )

जलती लाशें देख चेहरे पर इतनी लाली क्यूँ है

आँखें मौत का मंज़र देख कर भी मतवाली क्यूँ हैं

प्राणवायु पड़ गयी कम  

चहुंओर फैला है ग़म

फिर भी तेरी चहक में ये कव्वाली क्यूँ है

इस सूखे में भी तेरे खेतों में हरियाली क्यूँ है

मरनेवालों की फसलें काटने की उतावली क्यूँ है

तेरी खुशी की वजह क्या

इस बरबादी की वजह क्या

दहशथ के आलम में भी तेरी हसरतें बवाली क्यूँ हैं

कृंदन की तसवीरों की निर्लज्ज बिकवाली क्यूँ है

तेरा पेशा हर वक्त मेरे दर्द की दलाली क्यूँ है

अपनों से दगा

बस दौलत ही खुदा

ऐसा भी खुदगर्ज़ तू ऐसा हरामी क्यूँ है

पूरे देश में मातम फिर तेरी दिवाली क्यूँ है   

 https://twitter.com/AbiNavPancholi/status/1394593908500221962?s=20

Video above.

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#पत्तलकार #wapo #nyt #burningpyres #ecosystem

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