
देश के कोने-कोने में दिन-प्रतिदिन जितने ऑक्सिजन प्लांट बनाए जाने की घोषणा हो रही है , उसको देखकर लगता है भारत में एक दिन ऐसा भी आयेगा जब प्यार मांगोगे तो ऑक्सिजन मिलेगी, रोटी मांगोगे तो साथ में तरकारी की जगह ऑक्सिजन और अगर गलती से किसी ने खीर मांग ली तो उसे जबरन ऑक्सिजन चढ़ा दी जाएगी । चारों ओर सिलेंडर ही सिलेंडर दिखा करेंगे – कौवों, कबूतरों से अधिक , इन्सानों से भी ज्यादा संख्या में ! हर नागरिक के पास एक से अधिक सिलेंडर होगा , जिसे उसे हर समय साथ तोक कर के चलना होगा – हयून सांग की सामानों की टोकरी या सम्राट थोडांगा की कछुआई पीठ की तरह । जल्दी ही ऑक्सिजन सिलेंडर भारतीयों के मौलिक अधिकारों में शामिल होंगे और राशन की दुकानों पर बिका करेंगे । पंजाब, दिल्ली और बंगाल में मुफ्त भी मिल सकते हैं । किसी पार्टी का चुनाव चिह्न बन सकते हैं, दहेज में या गिफ्ट स्वरूप इनका आदान-प्रदान होना भी जल्दी शुरू हो सकता है ।
इसी बीच प्रत्येक उद्योग और मेडिकल कॉलेज को अपना खुद का ऑक्सिजन प्लांट लगाने की गाइडलाइंस जारी हो चुकी हैं । रेड टेपिस्म और अधिक सुर्ख लाल हो गया है । ऑक्सिजन प्लांट के बगैर पर्मिशन ही नहीं मिलेगी । वैसे भी देश में उद्योग लगाकर पागल किसे होना है, सो मे बी गुड रिडेन्स । हाँ मेडिकल कॉलेज का धंधा चंगा है , और अब तो सिर्फ ऑक्सिजन प्लांट डाल कर भी मेडिकल कॉलेज खोला जा सकेगा (चौंकिए मत, आईसीएमआर के रहमोकरम से ऐसे कांड भी हुए हैं )। हम हर बिल्डिंग पर रेन हार्वेस्टिंग और सोलर पेनल्स की बात किया करते थे, अब ‘घर-घर ऑक्सिजन प्लांट, हर घर ज़िंदगी’ के नारे दे रहे हैं । मेरे एक दोस्त का घर पर ही मिनी-बीयर प्लांट डालने का सपना था, अब वह मिनी-ऑक्सिजन प्लांट लगा रहा है । “जान है तो जहान है दोस्त । प्राण बचेंगे और बचाएंगे तो फिर बीयर तो ठेके पर भी मिल जाएगी” – इस हौंसले को सलाम है । जिस देश का जुवा इतना मोटिवेट हो जाए , उसे बर्बाद होने से भला कौन रोक सकता है ।
“इस देश के लोगों को एक-दो-चार नहीं, प्रधान सेवक जी, अनगिनत ऑक्सिजन सिलेन्डर चाहिए। पीने का पानी नहीं -कोई बात नहीं , कूकिंग गेस सिलेन्डर नहीं- काम चला लेंगे , सफाई नहीं- कोई फरक नहीं पड़ता , बस ऑक्सिजन सिलेंडर दिलवाने की कृपा करें ”- भविष्य में उस युवा बुड्ढे को मैं यह सब साफ-साफ कहते सुन सकता हूँ । संभव है निकट भविष्य में ऑक्सिजन सिलेंडर स्टेटस सिंबल भी बन जाएँ । आज हर हाकिम(आईएएस), सांसद और बिधायक का सपना है कि उसके इलाके में एक नहीं , दो नहीं , सैंकड़ों प्लांट लग जाएँ जो प्राणदायक वायु की निरंतर सप्लाई करते रहें । न सिर्फ अपने ज़िले का कम चले, बल्कि राज्य और देश के अन्य जिलों में भी सप्लाइ की जा सके । ओहो, फीते काटते हुए फोटो खिंचवाने के ऐसे कितने ही अवसर आने वाले हैं !
वैसे इस ओ2 रश के बीच में किसी दीवाने ने मुझसे एक एक होश की बात पूछ डाली । उसने पूछा कि इस प्लांट प्रोडक्षन की आपाधापी में क्या कच्चा माल, पार्ट्स, स्पेयर पार्ट्स, ओपरेटिव इत्यादि सबको मिल पाएंगे ? बरबस ही मेरे श्रीमुख से फूट पड़ा – कागज़ पर तो मिल ही जाएंगे । कागज़ पर प्लांट भी बन भी जाएंगे । कागज पर ऑक्सिजन की आपूर्ति भी हो जाएगी । मरीज ज़िंदा बच गया तो कागज़ की दरकार रहेगी नहीं, मर गया तो डेथ सर्टिफिकेट बन जाएगा । इनपुट जीएसटी क्रेडिट वगैरह सब कागज़ बनवा के ही न मिलेगा । बड़ा चौकस धंधा है । “और जो कागज़ नहीं बनाना और दिखाना चाहते ? उनका क्या ?”, दोस्त ने पूछा । “वो कार्बन डाइऑक्साइड कलेक्ट करें , जो ऑक्सिजन का इस्तेमाल करने वाले अपने श्वास तंत्र से निकालेंगे” ।
“तो समस्या भी कागज़ पर, और समाधान भी? श्वास कगाज पर, और शव भी; सब्सिडी कागज पर, सप्लाइ भी?” उसने फिर कटाक्ष किया । “ कोई सब्सिडी नहीं है बे, लायबिलिटी है । वरना ऐसा करो थोड़े पेड़ लगा लो, योगाभ्यास कर लो या मिल जाएँ तो टीके लगवा लो । सिलेंडर या इस सड़े-हुए सिस्टम के भरोसे रहोगे क्या ?” दोस्त कागज़/जों का इंतेजाम करने निकल लिया ।
इतनी अधिक मात्रा में ऑक्सिजन बना लेने की वजह से भारत को शायद ‘संसार का फेफड़ा’ कहा जाने लगे । बोलन्सरो के ब्राज़ील में वैसे भी अमेज़ों के जंगलों के दिन अब लद चुके हैं । कार्ल विल्हेल्म शीले और जोसेफ प्रीस्टले के बाद ऑक्सिजन के प्रति इतनी दीवानगी हिंदुस्तानियों के अलावा किसी ने नहीं दिखाई है । हमारा भविष्य ऑक्सिजनमय दिखता है । सवाल बस इतना है कि सोवरेन सोश्यलिस्ट सेकुलर डेमोक्रेटिक रेपब्लिक ऑफ इंडिया में ऑक्सिजनेटेड चुपके से जुड़ जाएगा , या फिर पाँच में से किसी एक शब्द को रिपलेस करेगा ?

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