
फूलों पर फिसले हुए,
पत्तियों के प्रति उदासीन,
क्या ही मतलबी शौकीन !
रंगीनियत पर कुर्बान,
चकाचौंध पर हलकान,
गए-गुजरे लंपट आशिकों से ! (6)
किसी ने कह दिया,
वाह क्या रंग है !
क्या भीनी-भीनी गंध है !
भिनभिनाते भौरों से प्रेरित,
मचलती तितलियों से मदोनमत्त,
कसीधे पढ़ते रहे फूलों की शान में ।12।
पत्तियों को कर दरकिनार,
मान पौधों की बंधुआ कामगार,
नज़र भर ठीक से देखा तक नहीं,
फूलों को तोड़ डालों पर से,
कर दिए बेगाने अपनों से,
पेश किए माशूका की शान में ।18।
पर सजाये कहाँ उसने केशों में,
झिड़क और दिया इशारों में,
उन्हें टिका देख फूलदान में,
जब दर्द हुआ मुझे इल्म हुआ,
क्या बुरे थे झूलते डालों पर ?
ये चढ़ सकते थे प्रभुपाद में !
मैं चढ़ सकता हूँ प्रभुपाद में ! (25)

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