
देश के कई शहरों में लॉकडाऊन लगा हुआ है । घर से निकलना, बाज़ार करना, व्यापार चलाना, भीड़ जमा करना – सब पर अंकुश है । फल-सब्जी-दूध भी समयानुसार मिल रहे हैं । रातों का कर्फ़्यू लागू है । ज़िंदगी और मौत में धागे भर का फरक बचा है ।
ऐसे में आज मोहल्ले मे एक बारात निकलती देखी। भों-भों वालों ने इस जुलूस में परमिटेड पचास की जगह डेढ़ सौ लोग इकट्ठे कर रखे थे । मेरा घर राधा-कृष्ण मंदिर के बगल में है। । अक्सर इधर-उधर की बारातें निकल कर मंदिर तक दर्शन को आती हैं । मंदिर पर पिछले पंद्रह दिनों से ताला है । बारातें फिर भी प्रतिदिन, बिना नागा आ रही हैं । प्रांगण के बाहर, सड़क पर से ही भगवान के दर्शन करके दूल्हा शादी के मंडप की ओर प्रस्थान करता है । जुलूस में बच्चे, बूढ़े, औरतें, जवान सब हैं ! जिस देश की युवतियाँ-महिलाएं कड़कती सर्दियों में खुले में होने वाली पार्टियों में आज भी स्वेटर-शौल नहीं डालतीं, उनसे आप बारात में मास्क पहनने की उम्मीद रखते हैं ? फिर मेकअप का क्या होगा ? सड़कछाप दोस्त और भाई क्या मास्क लगाकर नागिन डांस करेंगे ? बुड्ढों को हीरो बनने का मौका फिर कब मिलेगा ? क्या पता कल हो न हो । शादियों-बारातों में सब वैसे ही चल रहा है जैसा हमेशा चलता है । हाँ तीन सौ की जगह डेढ़ सौ लोग बुलाये जाते होंगे । प्रीतिभोज प्रेम में प्राण देने पर उतारू शौकीन हालांकि मास्क हटाकर ही खाते होंगे !
देश में सब कुछ रुक सकता है, देश रुक सकता है, आपकी-मेरी साँसें रुक सकती हैं, ऑक्सिजन सप्लाय और नोटों का इस्तेमाल भी – पर शादियाँ कैसे रुक सकती हैं ? एक भारतीय के जीवन का ध्येय है बच्चे पैदा करना । और बिना परणे आज भी भारत में कोई बच्चे पैदा नहीं करता या कर सकता (भतेरे तो प्रेम का इज़हार भी नहीं कर सकते) । पर थोड़ा रुक तो सकते हैं? चंद दिन, महीने ? दूल्हा, दुल्हन कहाँ भागे जा रहे हैं ?
इस बारे में शादी कर रहे एक लड़के के बाप से फोन पर बात हुई । बोला लड़की पसंद आ गयी तो सोचा क्यूँ वेट करना ? पता नहीं कबतक चले ये कोरोना और लॉकडाऊन का ज़माना । शादी करा देने से लाइन पर लगेंगे, ज़िंदगी आगे बढ़ेगी । कहने का मतलब है वर-वधू काम पर लग जाएँगे, जिससे अगली पुश्त के आने का रास्ता साफ होगा, अतः शादी अविलंब करवा देना निहित है । और फिर हिंदुस्तानी शादी होगी तो बारात, नाच, प्रीतिभोज में कोरोना गाइडलाइंस का वायलेशन तो होगा ही ।
वह ! क्या ही दूरदर्शी सोच है – अगली पीढ़ी के आने का इन्फ्रास्ट्रकचर तैयार हो रहा है, वर्तमान और भविष्य को तो वैसे भी आज नहीं तो कल जाना ही है । कोरोना के पीक पर आधिकारिक तौर पर जब बीमारी से 3500-4000 मौतें प्रतिदिन हो रही हैं , तब भी हम हर घंटे नेट 2000 और हर दिन करीबन 45000 की संख्या से अपनी आबादी बढ़ा ही रहे हैं । ऐसी सोच के चलते ही शायद मुसलमान और अंग्रेज़ बर्बरता भी हमारी सभ्यता को डिगा नहीं सकी , चीनी वाइरस की आखिर क्या बिसात है ।
हम बढ़ेंगे ! हम बढ़ते ही रहेंगे !
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