कल शाम ठाकुर साहब के संग महफिल लगी थी । नौकरी, राजनीति और मौसम से सरकते-घिसटते हुए बातचीत अंततोगत्वा क्रिकेट तक पहुंची । आईपीएल के सस्ते होहल्ले से दूर हमारी चर्चा के केंद्र में थी मध्यकालीन क्रिकेट । (मेरे हिसाब से प्राचीन काल प्रथम एक-दिवसीय विश्वकप, अर्थात प्रूडेंशियल कप 1975 तक का; 1975 से 1999 के दरमियान मध्यकाल और तत्पश्चात आधुनिक क्रिकेट काल माना जाना चाहिए ।) बैठे-बैठे भारत बनाम पाक मैचों का ज़िक्र हुआ , कपिल-इमरान और अजहर-मियांदाद को सलाम पेश किए गए, वसीम-वकार, सोहेल-अनवर-इज़ाज, कादिर-मुश्ताक, मोइन खान इत्यादि का लोहा माना गया और फिर अंत में बात आ फसी शारजाह और सन छियासी में चेतन शर्मा की आखिरी गेंद पर मियांदाद द्वारा ठोके गए सिक्सर पर ।
“चेतन शर्मा ने अगले ही साल रिलायंस विश्व कप में हेट्रिक ले डाली थी । लेकिन चेतन को इतिहास उस फुलटॉस के लिए याद रखेगा”, दर्शन बघारते हुए मैंने कहा ।
“हाँ, वो तो ठीक है, सबको ही याद है । पर क्या तुम्हें सत्तासी के विश्व कप से आठ-नौ महीने पहले ईडेन गार्डन में हुई भारत की ठुकाई याद है ? सलीम मालिक ने अकेले दम पर अस्सी हज़ार भारतीय दर्शकों और 11 भारतीय खिलाड़ियों की सारी झाल-मूरी चट कर डाली थी !” मेरे प्रिय मित्र माननीय ठाकुर साहब ने ऐलान किया ।
“अरे नहीं मालिक , 1986-87 तो अपना शैशव काल था । 5 टेस्ट मैचों की शृंखला पाकिस्तान ने 1-0 से जीती थी, ये अब पता है । पांचवें बंगलोर टेस्ट में सनी ने ज़बरदस्त टर्निंग ट्रेक पर 96 रनों की पारी खेली थी, फिर भी भारत 16 रनों से हार गया था । एक दिवसीय में पाकिस्तान 5-1 से जीता था । लेकिन देखे नहीं थे, यहाँ तक यूट्यूब विडियो भी नहीं !” ।
“तो सुनो गुरु, ये था दूसरा वन डे और पहला हम चुके थे हार । श्रीकांत के 103 गेंदों में आतिशी 123 रनों के दम पर भारत ने 40 अवर में 238 रन बनाए । अजहर ने 49 रनों का योगदान दिया । 6 का आसकिंग रेट उन दिनों में बहुत दुरूह हुआ करता था । शास्त्री (4/38) की सधी हुई गेंदबाजी के सामने एक समय पाकिस्तान का स्कोर था बत्तीस ओवर में 5 विकेट पर 161 रन । मैदान फतह करने के लिए दरकार थी अड़तालीस गेंदों पर अठत्तर रनों की, यानि नौ अशारीया सात पाँच रन प्रतिओवर । आज के हिसाब से भी देखा जाए तो भारत यह मुक़ाबला जीत रहा था । लेकिन ये इमरान और मियांदाद का पाकिस्तान था । अभी एक साल पहले ही शारजाह में मियांदाद ने आखिरी गेंद पर छक्का मार दिया था । लेकिन ईडन के इस मैच में मियांदाद निपट चुके थे । ऐसे माहौल में कप्तान इमरान खान अहमद नियाजी का साथ देने उतरे सलीम मलिक जिनसे ऊपर कादिर, मंजूर इलाहि और खुद इमरान मैदान में आए थे, ” ठाकुर साहब फुल फ्लो में थे ।
“क्या अजीब खिलाड़ी था बॉस ये मलिक । भारत की राह में परमानेंट रोड़ा । वैसे उसे मिडिल ओवरों में सबके खिलाफ ही रन बनाते पाया । क्रीज़ में इतना चहलकदमी करते कभी किसी को देखा नहीं । अजीब स्टाइल था – विकेट के कितना स्क्वायर खेलने का शौकीन- कट, स्वीप और पुल का मास्टर । तेज़ी से रन दौड़ने वाला, हमेशा कंट्रोल में दिखने वाला – क्या खतरनाक बल्लेबाज था!” हमको भी ज्ञान बहुत ज्यादा है, करें तो करें क्या उसका ?
“हाँ, अगर फिक्सिंग के फेर में न पड़ता तो पता नहीं क्या करता । मुझे तो मियांदाद से भी ज्यादा कंसिस्टेंट लगता था, और उससे कम कॉन्फिडेंट भी नहीं था ,” ठाकुरसाहब फ़ैनबॉय थे, मैं समझ गया ।
“तीनों विकेट दिखा कर खेलता था , मानो गेंदबाज को चिढ़ा रहा हो । गेंदों के अंतराल में कभी-कभी लगता था लेग अम्पायर तक टहल के आया है । एक-दो बार मुझे थर्ड स्लिप तक पहुँच-सा प्रतीत हुआ” । सलीम मलिक आज भी मेरे सपनों में आता है, पैंतीसवें-सैतीसवें ओवर में प्रभाकर या कपिल की गेंदों को बाउंड्री-पर-बाउंड्री सूँतता हुआ ।
“ उस दिन मलिक भाई ने आते ही मानिंदर को स्वीप करके चार रन बटोरे और कुछ इक्के-दुक्के भी चुराये। इसी दौरान मदी-पाहजी ने मलिक को फ्लाइट में बीट किया, लेकिन चंद्रकांत पंडित ने स्टम्प का मौका गवा दिया । अगले ओवर में कपिल ने इमरान को बोल्ड मार दिया- 6/174 । अब दरकार थी छ ओवरों में 65 रनों की, तकरीबन 11 रन प्रति ओवर । एकदम अशोम्भोव !
मनिन्दर के अगले ओवर (35वां) में मलिक ने मिड विकेट पर एक छक्का जड़ दिया और फिर तीन चौकों सहित 19 रन बटोरे । 36वें ओवर में कपिल की लगातार गेंदों को डीप स्क्वायर लेग, मिड ऑन, मिडविकेट और फिर कवर पर से सीमा रेखा के बाहर भेज दिया । केवल 10 गेंदों 35 रन लुटाकर भारतीय टीम दबाव में आ गयी थी । ईडन के हुल्लड़बाज़ भी अब चुप थे। मदन लाल के सैंतीसवें ओवर में मलिक ने दो चौकों की मदद से 13 रन जुटाये और इस दौरान 23 गेंदों में अर्धशतक पूरा किया । समीकरण अब बदल चुके थे – पाकिस्तान को आखिरी तीन ओवर में 17 , और फिर आखिरी ओवर में 4 रन बनाने थे, जो उसने वसीम और सलीम युसुफ के विकेट खोकर तीन गेंदें रहते बना लिए और दो विकेट से मैच जीत कर एक-दिवसीय शृंखला में 2-0 की बढ़त हासिल कर ली, और आगे जाकर 5-1 से जीत भी दर्ज़ की” ।

“ असाधारण”, मैं बोला । 1997 तक सबसे तेज़ शतक का रेकॉर्ड 62 गेंदों का था । उस हिसाब से मलिक बहुत ज़बरदस्त खेला” । सलीम मलिक के क्रीज़ पर आने के बाद पाकिस्तान ने 81 रन बनाए , जिसमे 72 अकेले मलिक के बल्ले से बरसे। उसने ये रन केवल 36 गेंदों में 11 चौके और एक छक्के की मदद से बना डाले । “ चौका लगाने के बाद क्रीज़ पर जब चल कर लौट रहा होता था- कभी बल्ले को उल्टा पकड़े-पकड़े हाथों में रोल करते हुए , तो कभी उससे पिच पर टक-टक करके या तो मिट्टी पाटने का अथवा पिच ठोकने का प्रयास करते हुए। मानो कोई कुशल कारीगर हो । जो वह था भी । उसका बल्ला न गदा था, न ब्लेड, न ही कोई जादू का डंडा- सलीम मलिक का बल्ला उसका औज़ार था, जिससे वह अपनी रोज़ी-रोटी चलाता था ।”
“स्पिनरों के सामने घने,खुले, लंबे बाल, इतने घने की कैंची उनमें घुसे तो खो जाये । तेज़ गेंदबाजों के सामने सफ़ेद रंग का बिना ग्रिल वाला सस्ता हेलमेट । मलिक चिचा को देखकर ऐसा लगता था मानो बैटिंग नहीं , वैल्डिंग करने आए हों ,’’ ये था ठाकुर साहब का पार्टिंग फ्लिक ।
इसके बाद हमने 1987 का रिलायंस विश्व कप डिस्कस किया , पर उसकी कहानियाँ किसी और दिन !
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