सिसकी पर लगा कर साइलेंसर (कविता)

सिसकी पर लगा कर साइलेंसर,

हिचकियाँ भगा हाजमोला निगल,

चाय की चुस्की खेञ्च कर लंबी,

गरदन मटकाती अगल-बगल,

आँखें मिचका, पलकें झपका,

होठों को दबा दर्द पी गयी,

बही कश्ती नहीं आंसुओं में मगर,

हया के दरिया में डूब गयी ।8।  

इश्क़ की इंतेहा फरमाइश पर,

थोड़ी-सी ज़ोर आजमाइश कर,

बाहों में फना वह हो गयी,

मदहोश-सी हो कहीं खो गयी,

नहीं फिक्र उसे, कुछ खबर नहीं,

न आना उसे, न जाना कहीं,

जब आँख खुली, दर्द फिर से उठा,

था कोई काँटा जो रहकर चुभा,

दांतों में कस कर अंगुली दबा,

होठों से हंसी, पर रो गयी,

वह पहेली थी चाहे शायरी,  

(जो भी थी)

उस पल में पूरी हो गयी ।20।


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