विचार कहीं ले जा रहे हैं,
शब्द अटक नहीं पा रहे हैं;
उद्गार हिन्दी में हैं पनप रहे,
निकल उर्दू में पा रहे हैं;
देना तो जवाब है हमको,
पूछे सवाल हम जा रहे हैं;
जब मौका खुल कर कहने का है,
बात को और उलझा रहे हैं;
कविता फसी है दिलोदिमाग के बीच,
ज़ोर हम कलम और पन्ने पर लगा रहे हैं;
माँझा छोड़ रखा है ढीला,
पतंग उठा नहीं पा रहे हैं;
जितना उठ रहे हैं ऊपर,
उतना गर्त में धसे जा रहे हैं;
जिसकी याद हर समय है आती,
उससे क्यूँ आँखें चुरा रहे हैं;
हम जिये जा रहे हैं,
हम जी कहाँ पा रहे हैं।18।
#जीनेदो #जियोऔरजीनेदो