हम जिये जा रहे हैं (कविता)

विचार कहीं ले जा रहे हैं,

शब्द अटक नहीं पा रहे हैं;

उद्गार हिन्दी में हैं पनप रहे,

निकल उर्दू में पा रहे हैं;

देना तो जवाब है हमको,

पूछे सवाल हम जा रहे हैं;

जब मौका खुल कर कहने का है,

बात को और उलझा रहे हैं;

कविता फसी है दिलोदिमाग के बीच,

ज़ोर हम कलम और पन्ने पर लगा रहे हैं;

माँझा छोड़ रखा है ढीला,

पतंग उठा नहीं पा रहे हैं;

जितना उठ रहे हैं ऊपर,  

उतना गर्त में धसे जा रहे हैं;

जिसकी याद हर समय है आती,

उससे क्यूँ आँखें चुरा रहे हैं;

हम जिये जा रहे हैं,

हम जी कहाँ पा रहे हैं।18।  


#जीनेदो #जियोऔरजीनेदो

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