एक कौवे को लगा बताने, पादरी उसकी लाचारी का हाल,
तू हाँ कर दे,बना दूँ कोयल, हो जाओ सब मालामाल,
रखा क्या है धर्म में तेरे, वही जाति- जी का जंजाल,
कांव-कांव कर मचा दिया इतने में कौवे ने कोलाहल ।4।
दूर दराज से उड़ते-उड़ते आ पहुंची पूरी जमात-
“जान अकेला तुम क्या कर देते हो धर्म परिवर्तन बलात?
दो बिसकुट, एक रोटी, मीठे बोल, थोड़ा-सा मुफ्त पानी,
इस प्रलोभन के बदले में देदें रामकृष्ण की कुर्बानी?
काकभुशुंडी बनकर खेले थे कभी रामलला के साथ,
आज चावल के बोरे के लिए, बदल लें क्या हम अपनी पांत?” (10)
यूं गरजकर काकमंडली लगी फड़फड़ाने अपने पंख,
धर्म की रक्षा हेतु देते रहना पड़ता है शत्रु को दंश,
“चोंच देख ले, देख ले पंजे , भाँप ले हौंसले हमारे,
दी रिश्वत फिर कभी जो हमको, बचा न पाएं प्रभु तुम्हारे,
लड़ भी लेंगे, मर भी जाएँ अगर भूख से, प्यास से,
बाँचते रहना है रामायण, हमको पूरे उत्साह से” ।16।
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