
मेरा नाम लिखा हो जिस पर भी,
वह प्याला मुझे प्रत्येक मिले;
अमृत-गरल जो भी हो प्राप्य मेरा,
उतना भर मुझे अवश्य मिले ।4।
जिस छाले को पलना ही हो मुझपर,
टिके नहीं लंबा, आकर जल्दी निकले;
लड़ना पड़े दुनिया से लड़ लूँगा,
एक बार उससे भी आँख लड़े।8।
तेरे दर्शन हों, न हो सकें लेकिन,
अब से मानस में तू सदैव रहे;
कुछ और भले न कर सकूँ इस वर्ष,
मेरी कलम खाली पन्नों पर दौड़ चले।12।
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