बहुत वक्त हुआ , बॉस ने ज़ोर देकर,डपटकर कहा था- मन से काम किया करो ! ढूंढो उसे, कहाँ खोया रहता है । तुम्हें भी गायब रखता है ।
तो अपने काम को ‘मन से’ करने की कवायद में मैंने अपने मन को ढूँढना प्रारम्भ किया ।
मन मिला पर तब एक लड़की पर आया हुआ था । उसपर से उतरने को कतई राज़ी नहीं हुआ ।
मैंने कहा- तुम उतरो और लौट आओ, तो ‘तुम से’ काम करूँ । क्या हंस बने घूम रहे हो, चलो बैल बनो और हंक जाओ मेरी वर्किंग लाइफ में । वैसे वाइफ भी तुमको ही पूछती रहती है ।
मन बोला – साईड हो ले , पहले प्यार करूंगा, उन्मुक्त प्यार, उसके बाद बात करियो । एक बार जो मैं किसी पर आ गया, तो फिर काम लायक तो ऐसे भी णा बचा ।
मन के विद्रोही तेवर देखकर मैं सकपका गया । बोला – भाई मन रे, काम करेंगे जद ही तो दाना-पानी मिलेगो !
मन का आखिरी कलाम रहा – काबू में तो आने से रहा । पर मन मार कर भी काम किया जा सकता है ,नीयत होनी चाहिए ।
बस जी, तब से अपनी नीयत को नियति बनाकर ढो रहे हैं । घर और दफ्तर में जैसे-तैसे चल जाता है ……अपना मन तो रहा नहीं, मन अपना कभी था भी नहीं, बिग बॉस के मन की बात आए दिन सुनते रहते हैं । एट होम एंड एट ऑफिस, ब्रोडकास्ट ऑन रेडियो, हर्ड ऑन टीवी । संजय मिश्रा के शब्दों में थोड़ा हेरफेर करके खत्म करूँ – खींच रहे हैं…और ऑप्शन क्या है ?
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