भारत में लोकतन्त्र नहीं है क्यूंकी मुझे अब भी सुना जाता है (व्यंग्य)

भारत में लोकतन्त्र नहीं है । आपके ख्यालों में होगा, पर भारत में लोकतन्त्र नहीं है ।मेरा नाम आँधी भले हो पर, मैं आँधी नहीं हूँ। ग और ध भले हों मेरे नाम में पर मैं धागा भी नहीं हूँ ।

पर अगर आपके ख्यालों में भी भारत ही है तो थोड़ा गौर से देखिये , आपको कश्मीरी पुलाव दिखेगा जिसे आप लोकतन्त्र समझ रहे हैं । अब आप मेरे पुलाव बोलने पर आपत्ति जताएँगे और कहेंगे उसे वेजीटेबल बिरयानी कहिए और पुलाव कहना है तो फिर कश्मीरी ही क्यूँ ? मैं उसे कश्मीरी पुलाव ही कहूँगा, बल्कि कश्मीरी चिकन पुलाव कहूँगा तो आप फट से बोलेंगे कि आप चिकन नहीं खाते । भैया यही समस्या है ! ये समझिए कि मुझे ख्यालों में आप सभी दिखते हैं- वेजीटेबल बिरयानी वाले, हैदराबादी बिरयानी वाले, कलकत्ता की आलू बिरयानी वाले और कश्मीर पुलाव, चिकन पुलाव यहाँ तक कि मटर पुलाव वाले भी । फरक बिरयानी और पुलाव का नहीं है, फरक मेरी समझ का है । मेरी, यानि आपकी….क्यूंकी हम सब आम आदमी हैं , सड़क के आदमी हैं और लोकतन्त्र तो मेरी समझ से सड़क का कानून होता है ।

 

तो मैं कह रहा था कि भारत में लोकतन्त्र कैसे हो सकता है क्यूंकी यहाँ तो चुनी हुई सरकार बिल संसद में लाती है और चर्चा करवा के उसे पारित करवा देती है । राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर कर देते हैं और कानून बन जाता है । अरे ये कैसा लोकतन्त्र हुआ ? क्या मुझसे पूछा, आपसे पूछा, इमरान खान से पूछा, क्षी क्षिंपिंग से पूछा, नत्थुलाल से पूछा, दरिद्र नारायण से पूछा, हरीराम नाई से पूछा, योगेंद्र यादव से पूछा, फन्नेखाँ से पूछा, प्रशांत भूषण से पूछा, लाला तोंदुमल से पूछा ? नहीं पूछा । हो सकता है मुझसे पूछा भी हो, शायद पूछा ही होगा, पर मेरी नींद तो सड़क पर आकर खुली है ।  

भारत में लोकतन्त्र नहीं है क्यूंकी चुनाव समयानुसार हो रहे हैं, उनकी विश्वसनीयता पर किसी निष्पक्ष विश्लेषक को संदेह नहीं है और परिणामों के अनुसार सरकारें बदल जाती हैं। समस्या इसके बाद चालू होती है । एक पार्टी हमेशा चुनावी मोड में रहती है। चुनाव भी क्या तैयारी करके लड़े जाते हैं ? ऐसा घोर प्रपंच कभी कहीं सुना है ? किस बात की तैयारी ? मुझे तो मशीनों पर भी शक है । ईमानदारी से चुनाव होते तो आपके आलू का बटन दबाने पर सोना निकलता , पर निकलता क्या है? कीचड़ में खिलने वाला फूल !

मैं बरसों पहले पाकिस्तान गया था । क्या आदर्श लोकतन्त्र है । वो लोग उसे जम्हूरियत कह देते हैं । इतना रौबदार शब्द है कि उसको उनकी फौज ही लागू कर पाती है । चीन को देखिये हाँग-काँग, क्षिंजियांग और तिब्बत में ‘कितना अधिक लोकतन्त्र’ लागू किया हुआ है । तुर्की में कितना प्रभावशाली इस्लामिक लोकतन्त्र है । नेपाल का शानदार लोकतान्त्रिक उदाहरण आपके सामने है जहां आयराम गयाराम चलता रहता है । बांग्लादेश में देखिये कैसे दो बेगमें लोकतान्त्रिक तरीखे से एक दूसरे का गला काटने पर उतारू रहती हैं और लंका में कैसे सिंहलियों ने लोकतान्त्रिक तरीखे से तमिलों को ईलेम भेंट कर दिया । लेकिन मैं लंका और ईलम की बात नहीं करना चाहता । मैं बस आपको ये बताना चाहता हूँ कि कैसे भारत में लोकतन्त्र नहीं बचा, बस आपके दिमाग में रह गया है ।

भारत में लोकतन्त्र होता तो सच के ठेकेदार चेनल और वेबसाइट्स जैसे एनडीटीवी,प्रिंट,कुईंट , स्क्रॉल, इंडिया टूड़े आदि प्रतिबंधित नहीं होते और प्रणय रॉय,रविश, बरखा, सागरिका, राजदीप, शेखर गुप्ता, वरदराजन आदि जेल में नहीं सड़ रहे होते । कोर्ट उन्हें बेल नहीं देता, अजेंसियाँ चार्जशीट फाइल नहीं करतीं ! भारत में लोकतन्त्र नहीं हैं क्यूंकी कश्मीर में लोकल चुनाव करवा दिये गए और कोरोना के दौरान आईआईटी की परीक्षाएँ करवा दी गईं । महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, झारखंड और बंगाल में विपक्ष की सरकारें गिरवा दी गईं । बंगाल से याद आया अगर दुनिया में कहीं लोकतन्त्र है तो वह वहाँ है – इतना अधिक कि प्रतिद्वंदी सड़कों पर खून की होली खेलते हैं । हमने कितनी कोशिश की ये जताने की कि कश्मीर में दमन हो रहा है , पर अमरीका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे आलोकतांत्रिक देशों के साथ मिलकर भारत सरकार ने हमारे सच को दबा दिया । कभी कभी अपुन को लगता है साला यूएनओ में भी लोकतन्त्र नहीं है ।

भारत में लोकतन्त्र नहीं है क्यूंकी भारत में राज्य हैं , राज्य सरकारें हैं, केंद्र शासित प्रदेश हैं , भाषाएँ हैं , निगम हैं, पंचायतें हैं, कानून है, कोर्ट हैं, प्रेस ज़िंदा है , पब्लिक है , पब्लिक ओपिनियन है,फ्रीडम टु डू बकबक है । यह वास्तव में लोकतन्त्र नहीं है, यह जोकतंत्र है जिसमे एक राष्ट्रीय जोकर भी है ।

भारत में लोकतन्त्र नहीं है क्यूंकी मैं अब तक सुना जाता हूँ और गिना जाता हूँ । भारत में लोकतन्त्र नहीं है क्यूंकी पीएम रेमोट कंट्रोल से नहीं चलता । भारत में बस कोरोना है, गरीबी है, खानदान हैं, जाती है, धर्म है, सोच है, सपने हैं, पर लोकतन्त्र नहीं हैं  । सबसे बड़ा तो दुर्भाग्य है कि अभी तक हिन्दू हैं , और हिन्दुत्व की लौ प्रज्वलित है । और जहां हिन्दू बहुसंख्यक वोटर हों, उसे लोकतंत्र कैसे कहा जा सकता है ।


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