कविता काफ़ूर हो गयी है,
चूंकि आज देर से उठा !
फुर्सत फुर्र हो गयी है,
क्यूँ देर से उठा !
चिड़ियाँ भी उड़ गईं हैं,
छत पर चुग्गा नहीं पड़ा,
आज क्या लफड़ा हुआ,
क्या अलार्म नहीं बजा? (8)
अब आँख खुली है
तो जमाने का बोझ है मुझ पर,
दो पल का चैन भी मिलना
आज है दूभर,
बॉस इंतज़ार कर रहा है दफ्तर में,
बन रहीं हैं रिपोर्ट,
घरवालों को भी देना पड़ता है,
थोड़ा मॉरल सपोर्ट ।16।
अब चिल्ल-पौं में जैसे-तैसे ये दिन कट जाये,
सृजन न होगा आज संहार भी न हो,
सुबह आलिंगन का नहीं मिला समय,
संध्या में प्रेयसी झल्लाई सी न हो,
जानता हूँ सुबह की बिदकी कविता
शाम को गीत बनकर न बरसेगी,
लेकिन जो फिर धुनी रम ही गयी
तो क्या सुर-ताल पर कल्पना नहीं थिरकेगी? (24)
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