फुदकती ज़िंदगी,
चहकती ज़िंदगी,
मुट्ठी बंद भी कर लूँ,
तो रेत सी रिसती ज़िंदगी ।4।
कहाँ टहलने को आतुर,
क्या बताने को बेचैन,
जितनी डोर खींचूँ,
उतनी ढील लेती ज़िंदगी ।8।
दोपहर को रंगीन शाम की आस,
काली रात को उजली सुबह का सहारा,
जितना घड़ी टालूँ,
वक्त का एहसास कराती ज़िंदगी ।12।
जब लिखना चाहूँ तो कलम जाये अटक
कभी हाथ में नहीं पन्ने,गाड़ी चलाते-बीच सड़क,
कौंधते विचारों को पकड़ती ज़िंदगी,
कहाँ मिल जाए प्रेरणा,कौन बन जाये ज़िंदगी ।16।
पन्ने छोटे, उद्गार बड़े,
लिखी किसके लिए, कौन भला पढे,
मिल जाये तो फल चखने का नाम ज़िंदगी,
न मिले तो डटे रहने का नाम ज़िंदगी ।20।
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