बीती रात शहर में जमकर बलवा हुआ,
आज सुबह से सेकुलरवाद की मीठी बयार चल रही है ।2।
गयी रात उनके हाथों में हथियार थे,
आज ज़ुबान पर गांधी और देश का संविधान है ।4।
कल पूछ रहे थे किसकी है यह दुकान?
बहुत इतरा कर जता रहे थे -किसी के बाप का नहीं है हिंदुस्तान!
हम थोड़े से एकजुट क्या हुए,
अब इन्हें लगने लगा है सब का खून है एक समान ।8।
कल रात को बटवारा मांग रहे थे,
(हँसकर लिया था पाकिस्तान इत्यादि…)
आज सुबह से ही हिसाब बराबर बता रहे हैं,
हम अभी संभले कहाँ हैं,
गिनती तो दूर की बात है,
ये अभी से मैच ड्रा बता रहे हैं । 14।
कल रात को बेरहमी से कत्लेआम मचाने वाले,
आज रोने वालों पर भड़काने के आरोप लगा रहे हैं,
कल फेंक रहे थे पत्थर, चला रहे थे गोली,
आज याद दिला रहे हैं कभी साथ खेली गई होली ! (18)
छद्म सेकुलरवादी, धिम्मी, दोगले कल दुबके हुए थे घरों में,
आज सुबह से हत्यारों को पीड़ित बता रहे हैं,
रात ताले लगा लिए थे घरों और मुंह पर,
अब बेशर्मी से आतताईयों का प्रोपेगेण्डा चला रहे हैं । 22।
जो गंवा बैठे हैं अपना सब कुछ कत्ल की रात में,
रात के मुजरिम उन्हें ही ताने सुना रहे हैं,
पत्रकारों की मत कहना, मेरे दोस्त ,
किसी के तो गुनाह लगे गुलगुले,
कहीं न्याय की फरियाद को नाटक बता रहे हैं । 27।
नाउम्मीद न हों !
हौसला रखो !
ये कौन लोग हैं जो सच, कानून, मानवता को
बेफिक्री से धता बताए जा रहे हैं?
किसके नाम पर, किसकी शह पर,
मुहल्लों में, सड़कों पर मौत नचा रहे हैं ।33।
हमें हमारे हितैषियों से बचाओ,
कल रात से ही पुलिस, अदालतों, मानवाधिकार की
राह बतला रहे हैं,
हम झेले बैठे हैं गोलियां,
ये महानुभाव जांच पर जांच बैठा रहे हैं ! (38)
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