जब तक नहीं जलती सिगरेट,
दफ्तर शुरू नहीं होगा, हो सकता,
बंद दिमाग, अनमने भाव,
म्यान में अलसा रही कलम
मांग रहे हैं निकोटींन,
मामला है बड़ा संगीन,
वैसे साहब नहीं कुछ खास शौकीन,
पर फर्ज़ करो साँप,
और तसव्वुर करो बीन ! (9)
बजा हो साढ़े नौ या ग्यारह,
या घड़ी दिखलाये पौने बारह,
भले खुला हो कमरे का ताला,
कुर्सी पर हों हुज़ूर-ए-आला,
न तो जली हो बत्ती लाल,
न फोन चल रहा हो फिलहाल,
पर जब तक लगा नहीं लेते हैं
तंबाकू के लंबे कश,
घेरे रहेगी साहब-ए-आलम को
एक अजीब-सी कश्मकश,
बन नहीं पाएगी एकाग्रता ,
नहीं बढ़ेगा आगे काम,
फसे रहेंगे उधेड़बुन में,
अजगर बनें, करें आराम ।23।
तो लाटसाहेब!
तुरतातुरत सिगरेट मँगवाओ,
सिपाही ! मेरे दोस्त !
साथ में एक ग्रीन टी भिजवाओ,
क्यूँ चांस लेना ,माचिस भी दे आओ,
दे क्या आओ, जाओ तीली जलाओ ,
क्रांति की मशाल सुलगाओ,
लाटसाहेब से कह भी देना-
‘जहाँपनाह,वज़ा फरमाओ!’ (32)
एक गहरा घूंट गरम पेय का,
साथ में सुट्टा दबा के खींचा,
मेरे प्यारे बड़े साहब ने,
तन्मयता से मन को सींचा,
अब सरपट निपटेंगी सब फाइलें,
तुरतातुरत डिस्पोसेंगे पेंडिंग काम,
भले जितना हो अवरुद्ध मार्ग,
खुल जाएंगे अब सारे जाम ।40।
भर-भर धुआँ फेफड़ों में,
तनाव बढ़ाकर धमनियों में,
बूंदें जमा कर कुछ पेशानी पर,
फूँक देते हैं नथुनों से बाहर,
सिगरेट थी आखिरी बहाना,
अंतिम अड़चन श्रीगणेश में,
कमर कसी संग फसी आत्मा,
नहीं अवरोध शेष अब कार्यसिद्धि में ।48।
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