भर फोकट का आऊटरेज़ एसी में बैठे-बैठे,
ये फ्री-फंड का एक्टिविज़्म कॉफी पीते-पीते,
ट्विटर करते-करते लग जाना लड़ने-झगड़ने,
बात कहते-कहते लगना जन-सबोधन करने,
सेंटीमेंटल होकर कभी-कभी गरजने-बरसने लगना,
प्रायः हर मुद्दे पर ही बागी राय रखना,
“सरेआम लटका दो फांसी पर !
ऐलान करना सोफ़े पर चढ़कर,
कब फिसलेगी गाड़ी इनकी?
कब होगा पब्लिक में एंकाउंटर?
मैं होता डाल देता पूरे खानदान को अंदर,
दे दना दन -दे दना दन खूब चलाता हंटर”,
ओ सइयाँ झोलेवाले ! मार्क्स माओ के चेले!
क्यूँ फोड़ता रहता है दिनभर मुंह से हथगोले ?
पल्ले तेरे हैं नहीं कुछ, चिट्ठा पूरा खुल चुका है,
कितना दम है, कितनी कुव्वत,पता सबको चल चुका है,
छल्ले उड़ा-उड़ाकर तू अब हाँकता रह जी भर डींगे,
पढ़ता रह अपने माओ चाचा से खूब प्यार की पींगें । 18।