मेरी रात का अगला पहर तेरी नयी सुबह है,
जग सो कर उठ गया, मैं अब भी जागा हूँ,
देखते-देखते अनंत अँधेरों में कान्ति भर आई,
न स्याह ने पूछा, न मैंने सबेरे को बताया,
आत्ममुग्ध को अब कहाँ ढूंढेगी ललाई ? (5)
मेधावी हैं जिन्हें बहुतेरे प्रश्न उपजते हैं,
प्रकांड विद्वानों को प्रत्युत्तर बुझाते हैं,
इस उदासीनता में उतरता है हममें बस गरल,
न हिसाब लगा पाते हैं , न चुकाते हैं,
प्रवाह-विहीन इस जीवन में केवल नैराश्य है प्रबल।10।
उसने बाँट दिए पत्ते तो लग गया दांव,
देखो कहीं पड़ा होगा प्याला भी, चिलम भी,
कोई सजा लाया थाली तो कर लिया भोजन,
उसने इशारा भर किया होता तो सो भी जाते !
जीवनधारा से अपने नदारद हैं प्रयोजन और नियोजन । 15।
चैन से कट रही है गेलिलिओ के सिद्धांत पर-
“ए बॉडी एट रेस्ट रिमेन्स एट रेस्ट
अनलेस एक्टेड अपोन बाय अनबेलेंस्ड फोर्स…”,
टु हेल विद दोस जेलस टाइप्स, जो कहते हैं-
यह भी सुधर जाएगा ‘इन ड्यू कोर्स’……… (20)
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