अब बंद करो लॉकडाउन का प्रपंच (एक कविता)

ये चल क्या रहा है ?

जब मन हुआ लॉकडाउन,

जब सिर फिरा तो “कम डाउन-

-टु ऑफिस, रिपोर्ट इज़ अरजेंट”,

कभी गुरु, कभी शुक्र,

कभी शनि-रवि-सोम,

मन किया पहुंचे ऑफिस,

नहीं तो वर्क फ्रम होम,

मंगल और बुध पर कोरोना की दशा भारी,

हनुमान, गणेश की महिमा है न्यारी,

खुद की बर्बादी की है पूरी तयारी !      (1)

सब बंद!

सब कुछ बंद,

मजदूर का काम बंद,

गरीब की भूख मंद,

मेहनत और मक्कारी में द्वंद्व,

निष्ठुरता-पागलपन में हुए स्थापित

परस्पर मजबूत संबंध ।               (2)

ये कौन जनहित में फैसले लिए जा रहा है?

लॉकडाउन का कलेंडर छापे जा रहा है,

कभी पूछता है गरीब के पेट से ?

कभी देखता है उत्पाद के आंकड़े ?

लोग जिये या मरे,

कोई बेरोजगार का भी सोचो रे !   (3)

आराम के लिए धन्यवाद,

छुट्टी के लिए आभार,

शुक्र हो या सोम,

बना डाला हर दिन रविवार,

सरकारी का चल जाएगा,

बेचारा गरीब क्या खाएगा ?

भाड़ में जाये कोरोना,

मरना एक दिन है ही,

तो तिल-तिल क्यूँ मरें ?

घरों में दुबककर क्या

मौत का वेट करें ?         (4)

नकाबपोश चेहरा लेकर भी बाहर नहीं जाऊंगा?

मैं आसानी से कोरोना की जद में न आऊँगा,

फिर भी पकड़ लिया हरजाई ने तो देखेंगे,

कब तक वेक्सीन की राह तकेंगे ?

चीन का ये उपहार,

अब नहीं है स्वीकार,

लॉकडाउन के त्योहार का,

अब करो बहिष्कार,

बंद करो ये अत्याचार !

मत पकाओ अब ग़ुलामी की खीर-पूड़ी घर पर,

नज़रबंदी का जश्न मत मनाओ,

नेट्फ़्लिक्स पर सिनेमा कब तक चलाओगे?  

जड़ हो चुके मस्तिष्क को कितना बहलाओगे?

चेनलों से चिल्लाती आवाज़ों से,

मन के भूत कब तक भगाओगे?  

चले गए इरफान –ऋषि,

चला गया सुशांत,

गयी रिया भी अब जेल में,

बहुत हुआ अर्णब का भी,

रविश को दो अब मौका,

थोड़ा घूमने-फिरने दो,

अब अर्थव्यवस्था चलने दो,

वरना फिर आंकड़े आने पर,

जनता को बरगलाओगे !    (5)

ऐसा कब तक चलेगा?

बाबू बोले तो जाओ रोजगार पर,

आदेश दे तो घर में घुस जाओ,

दिहाड़ी न मिले भूखे सो जाओ,

बाबू की तनख्वा की गारंटी है,

सरकारी आदमी इस सुविधा का आदि है,

दरिद्र नारायण की सोचो,

विश्वगुरु के भविष्य की सोचो!       (6)

पिल्लुओं की शालाएँ कबसे बंद हैं !

इन्हे आदत पड़ रही है आरामगरदी की,

ये आदत बहुत भारी पड़ेगी और पड़ रही है,

माँ-बाप सब समझ रहे हैं,

बच्चे बिगड़ रहे हैं,

पर क्या करें ? बेबस हैं,

कुछ कर नहीं सकते,

सरकारों का पव्वा है,

कोरोना का हौव्वा है,

घर आकर डिग्री दे जायगा मास्टर,

असली चाँदी इन्ही छात्रों की है,

सरकारी कर्मचारी तो बस छाली काट रहे हैं,

एक जमाने में उनके दफ्तर में ठाठ रहे हैं,

आज घर बैठे सब्जियाँ काट रहे हैं !    (7)

जीवन अवरुद्ध है, अनिश्चित भी,

आम आदमी रोबोट बन चुका है,

असली हो या वर्चुअल,

नेता की मंशा है रैली में लोग पहुचें,

चाहे काम-धंधे ठप रहें,

जुलूस में ज़रूर जाये,

ट्वीट करते रहें ,अपनी बात पहुंचाएं,

घर से काम करने का स्वांग भरें ,

टेक्स दे , कोई वोट मांगे वोट दे,

आदमी बस वोटर बनकर रहे,

कोरोना को वोटिंग से कोई प्रोब्लेम नहीं है ! (8)

बंद करो ये कोरोना सूचिकांक,

बहुत हुआ संख्या का आतंक,

एक नहीं, फ़ेक्ट्री में दो शिफ्ट चलाओ,

बाहर खाओ, बाहर से खाना मँगवाओ,

खोलो बंद पड़ी ट्रेनें,

करवाओ अब चुनाव,परीक्षाएँ,

होने दो खेल, शादियाँ,

निकलने दो बारातें,

शालाएँ खोल दो,

नौकरों को आने दो काम पर,

सबको करो लाइन हाजिर,

हंटर चलकर काम करवाओ,

तभी बनेगा विश्वगुरु,

घरघुसिया बनकर नहीं ,

बहुत हुए ये लॉकडाउन,

नाओ लेट वर्क प्लेस बी द बेटल ग्राउंड ।9।  

  (जय हिन्द/जय हिन्द/ जय हिन्द )


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