रानी विक्टोरिया का इस्तक़बाल और सूखे घोड़ों की सवारी

123बरगद के तने सी चौड़ी रानी विक्टोरिया जड़ मुद्रा में जमी बैठी हैं कलकत्ता में । काले कौवों को अक्सर इस कांसे की काली महारानी के साथ क़हक़हे लगाते देखा जा सकता है । 1901 में जब रानी ने अपनी भारीभरकम देह त्यागी थी ,तब उनके एक मातहत नथेनियल कर्ज़न ने उनकी और ब्रितानी हुकूमत की अहंकारपूर्ण  स्मृतियाँ सँजोये रखने हेतु एक भव्य मेमोरियल बनाने का प्रस्ताव रखा था । कर्ज़न के भारत से रवाना होने के एक बरस बाद यानि 1906 में जाकर इस स्मारक की नींव रखी जा सकी और इसे बनने में पंद्रह बरस लग गए । इस चाटुकारिता पुराण का एक महान अध्याय यह भी है कि कैसे भारतीय केंचुओं ने अङ्ग्रेज़ी आकाओं की चमचागिरी में एक करोड़ पाँच लाख रुपयों का पूरा खर्चा अपने सिर पर लिया था । अर्थात यह अनुस्मारक भारतीयों का स्वयं को कर्ज़न के सौजन्य से विक्टोरिया के नाम पर एक तोहफा है ।

[ क्लाइव ]                                        [ रिपन ]                         [ कर्ज़न ]

7

मल्लिका –ए-हिंदुस्तान की प्रतिमा के चारों ओर बहुत से वाइसरायों (वाइरस न पढ़ें, पगलाएँ नहीं) की प्रतिमाएँ एक विशाल उद्यान में फैली हुई थीं/हैं । रोबर्ट क्लाइव की एक रौबदार प्रतिमा हाल के अंदर सुशोभित है जिसमे वह तलवार हाथ में लिए खड़ा है । काले रंग की लॉर्ड रिपन की मूर्ति पर भी मेरी नज़र पड़ी । वारेन हेस्टिंग्स , वेलेजिली और पापा कोर्नवालिस के बुत अब नदारद हैं । पर सबसे गर्वीली प्रतिमा स्थित है स्मारक के दक्षिण गेट पर – वहाँ बंगाल का विभाजक लॉर्ड कर्ज़न अपनी पूरी ईटनी की आन-बान-शान में सावधान मुद्रा में तैनात है ।

8

9

मैं दक्षिण गेट से ही टिकट लेकर दाखिल हुआ था । घुसते ही एक दरवाजा सरीखा बना हुआ है जिसे किंग एडवर्ड सप्तम मेहराब (आर्क) कहते हैं और जिसके ऊपर राजा की घोड़े पर सवार प्रतिमा स्थापित है । थोड़ा बढ़ते ही आन-बान-शान से खड़े कर्ज़न से रूबरू हो गया । आगे चलकर स्मारक में प्रविष्ट होते समय एक अजीब दृश्य ने मेरा ध्यानाकर्षित किया । एक छोटी तोप का मुहाना कर्ज़न के पिछवाड़े की तरफ निशानेबद्ध है । बड़ा साम्राज्यवादी बनता था ! तोप के निशाने पर तनवां खड़ा कर दिया गया !

10

सफ़ेद संगमरमर से बना यह अनुस्मारक धूप में चारों तरफ से दीप्तिमान था । मुख्य गुंबद पर एक सोलह फीट की ‘एंजेल ऑफ विक्ट्री’ प्रतिमा विद्यमान है जो हवा में हिलती-डुलती सी प्रतीत होती है । मैं ठीक सामने  से स्मारक हाल के पूर्ण चित्र नहीं ले पा रहा था , इसलिए दूर एक कोने में जाकर दृश्य कैद किए । तब कहीं जाकर पूरी इमारत एक फ्रेम में समा सकी  ।

11121314

हाल के अंदर प्रवेश किया तो देखा बहुत से हथियार, बेटल प्लान, पोशाकें, मानचित्र, पांडुलिपियाँ, कलाकृतियाँ, चित्र, तस्वीरें, तोपें और मूर्तियों की प्रदर्शनी सजाई हुई है । भीड़ का तांता लगा है । मुख्य गोलार्ध के नीचे वाले हाल में ऊपर की ओर सुंदर गर्दाने, मेहराब, खंबे आदि नज़र आते हैं । क्लाइव की मूर्ति यहीं पर रखी है । विक्टोरिया के जवानी के दिनों की एक मूर्ति भी यहीं पर शोभायमान है । इनहीं गेलेरियों में मुझे मेकौले, माइकल मधुसूदन दत्त, अरबिंदो और नील दर्पण के लेखक दीनबंधु मित्रा के प्रेरक चित्र दिखाई दिये ।

151617

[ दीनबंधु मित्रा ]                            [म.म.दत्त ]                  [मेकाले ]

हाल के उत्तरी द्वार की ओर निकासी करने पर विक्टोरिया की मुख्य काँस प्रतिमा पीछे से दृष्टिमान होती है । सीधे चलते रहने पर महारानी का इस्तकबाल कर हम विक्टोरिया मेमोरियल के मुख्य द्वार पर आ पहुंचते हैं जिसके दोनों तरफ सफ़ेद संगमरमर के दो भीमकाय शेर पहरा दे रहे हैं । बाहर निकल कर लेबूचा, कोल्ड ड्रिंक, मूरी,चनाजोर-मूँगफली वालों को पार करके मैं सड़क के सामने वाले छोर पर पहुंचा जहां लाइन लगी थी बहुत से घोड़ों और बग्गियों की । यही मेरा गंतव्य था । बहुत समय से इच्छा थी बग्गी-भ्रमण करने की ।

पर यहाँ देखकर हैरान रह गया कि कतारबद्ध सारे घोड़े एकदम सूखे और मरियल थे । भारी,सजीली बग्गियों को ये कैसे खींचेंगे ? मेरे सवाल पर सोनू तांगेवाला बिदक गया । “आप इनपर नहीं तो किसी और पर बोझ डालोगे । ये भी आपको नहीं तो किसी और को घुमाएंगे । इंसान बैठना बंद कर देंगे तो समान ढोएँगे । जब वह भी नहीं हो पाएगा तो इन्हें कसाई को बेच दिया जाएगा । मुफ्त में आखिर कैसे पालेंगे?”  यह सुनकर मेरी शर्म हवा हो गयी और मुझपर पर घोड़ों और उनके मालिक को बचा लेने का ज्वार चढ़ आया ।  मैं पाँच सौ रुपये किराया फिक्स करके लपक कर बग्गी पर चढ़ गया । मैदान के आसपास वाली सड़कों पर करीब बीस-पचीस मिनट तफरी करते हुए सोनू ने बताया कि घोड़े सूखे ही नहीं बूढ़े भी हैं पर हैं बड़े जीवट । किसी भी हिंदुस्तानी के मन में घोड़े के समीप पहुँचते ही प्रताप के चेतक का ख्याल अवश्य आता है । “ये कंकाल इतने मनोयोग से दौड़ते हैं, आशीष है इन्हे । चेतक की सवारी तो प्रताप जैसा शूरवीर ही कर पाता होगा। धन्य है दोनों ”।

2625

उतरते समय मैं सोचने लगा कि कैसे आज भी औपनिवेशिक स्मारक के भीतर सब कुछ बेहतरीन और भरा-भरा है – स्थापत्य, मूर्तियाँ, गेलेरीज़, उद्यान । पर विक्टोरिया मेमोरियल की चारदीवारी के बाहर भले सड़कें चौड़ी और पेड़ ऊंचे हैं , पर मनुष्य और घोड़े अब भी कांतिहीन, कमजोर और उजड़े-उजड़े ही हैं । शायद साम्राज्य और सड़क की खाई कभी न पट पाएगी ।

23

अब तो चीनी वाइरस के चलते सैर-सपाटे पर विराम लग गया है । बीते दिन आवारगी के याद आते हैं बहुत वेग से । कलकत्ते के बाहर जब जाते थे तब जाते थे , महानगर में भी पार्क स्ट्रीट, इको पार्क,बेलुर मठ और दक्षिणेश्वर, साऊथ सिटी जैसे स्थलों के आए दिन फेरे लगाते थे । अब सिर्फ स्मृतियों का सहारा है । यह सोच कर विक्टोरिया स्मारक की स्मृतियाँ साझा कर रहा हूँ कि जल्द ही हम चीन को लद्दाख से और चीनी वाइरस को अपनी जीवनचर्या से निकाल फेकेंगे । कुछ वायसरायों की मूर्तियाँ ढूँढना बाकी हैं । बलिष्ट शेरों और सूखे घोड़ों से अगली बार उन्हें खोज लेने का वादा करके आया था ।

24IMG_20191012_163440272

 


 

#लार्डकर्ज़न #कलकत्ता #कोलकाता #विक्टोरियामेमोरियल #बंगाल #विक्टोरिया

#LordCurzon #Kolkata #Calcutta #victoriamemorial #Bengal

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s