परसों तक उसके मदिरा व्यसन और निद्रा प्रेम के चर्चे थे ।
कल वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया ।
बहुत से शोकातुरों ने बंद मुट्ठियों – खुले अंगूठों को अपने मुखों की ओर खींचकर उसकी मृत्यु में मदिरा के योगदान के बारे में पड़ताल करनी चाही ।
कुछ ने सीधे यकृत पर आक्षेप लगाए ।
बहुतों को उसके उन्मत्त स्थिति में दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका हुई ।
दो-चार को लगा उसने आत्मघात किया है ।
एक ने उलाहना देकर कहा “थोड़ा कस के हिलाओ-डुलाओ । कौन जाने गहरी नींद में सोया पड़ा हो ?”
सारे अनुमान अंततः निराधार निकले ।
वह कोरोनाग्रस्त हो गया था ।
घर में बैठकर पीते रहने या सोते रहने से कोरोना नहीं हो सकता ।
उसकी मृत्यु का उत्तरदाई चीन था ।
मदिरा के दुष्प्रभावों से उसका अंत हुआ नहीं और निद्रा की बहुतायत से आज तक कोई सिधारा नहीं ।
अब कहीं उसकी चर्चा नहीं है ।
महामारी के आरंभिक दिनों में मर जाने पर आप समाचार बन जाते हैं ।
बाद के दिनों में कोई नहीं पूछता ।
बल्कि आपका स्मरण काल को निमंत्रण सा प्रतीत होता है ।
तलवार सबके ऊपर लटक रही है ।
वह तलवार पर कूदता उससे पहले एक उसपर गिर गयी ।
ऐसी मृत्यु से भला समाज को क्या लाभ हुआ ?
अपने मरण में वह समाजोपयोगी नहीं रहा ।
इससे अधिक महत्ता तो उसके मदिरा सेवन और निद्रा मोह में थी ।
उसे अब एक बुरे उदाहरण के रूप में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था ।
शयन कक्ष से बाहर न निकला होता तो शायद जीवित होता ।
पीकर सोया रहता तो उसे कोरोना कैसे जकड़ता?
उसके जैसा अंत अब किसी का भी हो सकता है ।
परसों तक जो व्यसन थे अब मायने नहीं रखते ।
महामारी की चपेट में आकर उसने स्वयं को सामान्य बना लिया था ।
सामान्य को मृत्युपर्यंत भुला दिया जाता है ।