कुछ ऐसी भी गणित पढ़ते हैं,
कि लाशें गिनने लगते हैं,
अरे हम भी तो गणित पढे हैं,
भले नौकर कहीं लगे हैं।4।
वो क्रिकेट भी हैं खेले,
अब फेंक रहे भट-गोले,
हमको भी पसंद था अख्तर,
नहीं खड़ा किया कोई लश्कर।8।
माँ बूढ़ी और बाप मास्टर सबके ही होते हैं,
मानवता के दुश्मनों के सींग कहाँ होते हैं,
भूलकर न समझें वर्दी में इंसान नहीं होते हैं,
उनको महिमामंडित करने पर भुगतान नहीं होते हैं।12।
जिहाद के फटे नोट को जो कहते हैं आज़ादी,
हम करें आत्म-रक्षा भी तो अत्याचार कहते हैं,
जिहादियों से डर नहीं पर धिम्मियों से असली खतरा,
रेंग-रेंग कर चलने वालों का जहर बड़ा है गहरा ।16।