रामायण और महाभारत एक साथ देखने पर लाज़मी है कन्फ़्यूजन

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सुबह रामायण धारावाहिक देखा , फिर महाभारत , उसके बाद लंच करके सो गए । उठ कर घर में ही थोड़ा चहलकदमी की , क्यूंकी लॉकडाउन काल चल रहा है । फिर डिनर के साथ पुनः महाभारत देखा , उसके बाद रात्रि में रामायण की आगे की कथा फॉलो की और देख-दाखकर सो गए । सुबह जल्दी उठ कर घर में थोड़ी चहलकदमी कर ली, घर में ही की , क्यूंकी यह लॉकडाउन काल है । नौ बज गए हैं , अब फिर रामायण के आज के एपिसोड की प्रतीक्षा कर रहे हैं…..

 

सीरियल चलाने वाले का क्या जाता है ,तीस साल पुरानी रीलें निकालीं, झाड़ी-फूंकी और प्ले दबा दिया । लॉकडाउन करने वाले का भी क्या जाता है ? एक भाषण दे दिया , मृत्यु का भय दिखा दिया और हम जैसे चिरकुट धर्मभीरु हो गए खुशी-खुशी नज़रबंद। पर सुबह शाम एक-के-बाद-एक रामायण के चार और महाभारत के दो एपिसोड आत्मसात कर पाना टेढ़ी खीर है ।किरदारों और कहानियों में बहुत सी समानताएं हैं । दोनों इतिहासों की थीम बहुत अलग हैं , समस्या-निदान के तरीखे भी जुदा हैं । अभी तो बमुश्किल चार-पाँच दिन ही हुए हैं , लेकिन कह सकते हैं कि इन्फॉर्मेशन ओवरलोड, वेरीड मोड्स ऑफ प्रोब्लम सोलविंग एंड कनफाइनमेंट आर ए स्ट्रेंज मिक्स !

 

इस होच-पोच में कईयों को घटनाओं और पात्रों में कन्फ़्यूजन हो रहा है । अभी कल ही तो श्रीराम, सीता और लखनलाल जी वनवास के लिए निकले थे , और आज ही कुंती और माद्री के संग पांडु भी महल से निकल लिए । मानो त्रेता और द्वापर गुत्थमगुत्था हो गए ! शांतनु को गंगा किनारे गंगा भा गयी थी , और यमुना किनारे मत्स्यगंधा । दशरथ के भी तीन रानियाँ थीं , तीसरी यानि कैकेई सारथी बनकर मूर्छित नरेश को युद्ध से बचा कर लायी थी । पांडु की दूसरी ब्याहता , माद्री ,भी एक अच्छी सारथिन थी । जिस तरह दशरथ के दो वचनों को पचा पाना मुश्किल है , उसी तरह भीष्म की प्रतिज्ञा को स्वीकारना भी सुगम नहीं । दोनों ही पारोन पर क्रोध भी आता है और तरस भी । अपने ज्येष्ठ पुत्र और युवराज को राज्यविहीन कर देने के अपराध बोध से दशरथ भी मृत्योन्मुख हुए , और शांतनु भी । कैकेई को भड़काया उसकी दासी ने , तो भीष्म की राह मे रोड़ा बना सत्यवती का पिता । दशरथ के एक बाण ने श्रवण कुमार के प्राण हर लिए थे , वहीं पांडु के तीर से ऋषि किंदम मारे गए । शोकातुर श्रवण के पिता ने दशरथ को पुत्र-वियोग में मृत्यु का श्राप दिया था , तो किंदम ने पांडु को स्त्री-संसर्ग पर मृत्यु हो जाने का । गंगा ने शांतनु के सात पुत्रों को नदी में बहाकर मार दिया था , आठवें देववृत हुए ।  कंस ने वसुदेव-देवकी के सात पुत्रों की हत्या कारागार की दीवारों पर फेंक-फेंक  कर दी थी  , जन्म लेने वाले आठवें थे भगवान श्री कृष्ण । रामायण की खलनायिका मंथरा एक कूबड़ी थी , तो महाभारत का विलेन शकुनि पोलियो से पीड़ित था । विधुर भी जनक की तरह ही बुद्धिमान थे । शुक्राचार्य , परशुराम ,वशिष्ठ, विश्वामित्र और अगस्त्य तो किसी भी धार्मिक कथा में कभी भी प्रकट हो जाया करते थे ।सब एक जैसा ही तो है । कभी-कभी लगता है अपुन ही राम है, और अपुन ही कृष्ण । अपुन ही लक्ष्मण भी है, और अपुन ही अर्जुन ।

 

नज़रबंदी के दौरान घर में तातश्री , पिता-माता महाराज , स्वामी, सखा, प्रिय-प्रिये, अनुज, पितामह के इस्तेमाल से माहौल खुशगवार हो रहा है । बचे-खुचे समय में स्वजन महाकाव्यों पर जमकर बहस भी कर रहे हैं । गनीमत है दफ्तर बंद हैं इसलिए बॉस को राजन या महाराज कहकर संबोधित कर देने की आशंका नहीं है , न ही कर्मचारियों को सिपाही समझकर कूच करने का आदेश देने की । उम्मीद है आज हुए कृष्ण जन्म के साथ ही सारे कन्फ़्यूजन छूमंतर हो जाएंगे । जब तक लॉकडाउन खत्म होगा तब तक हम दोनों ग्रन्थों में पारंगत हो चुके होंगे ।बेचारे धिम्मी और वामपंथी शायद तब तक जल कर भस्म चुके होंगे । उनके अनुसार रामायण के पहले प्रसारण से देश भर में राम जन्मभूमि के पक्ष में उन्माद का सागर उमड़ा था । अब कहीं पुनःप्रसारण से काशी और मथुरा में कायाकल्प हो जाए , तो वार-नारे ही हो जाएँ । एक साथ रामायण और महाभारत देखने के फलस्वरूप कुछ तो बड़ा होगा , और इसका सारा श्रेय दूरदर्शन और जावडेकर साहब को जाएगा ।

जय श्री राम

जय श्री कृष्ण

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