माई नेम इज़ शाहरुख अनुराग मिश्रा & आई एम ए टिक टॉक आर्टिस्ट

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खुद का पाणे छिपा लिया रवीश कुमार ने , पर शाहरुख के अनुराग पर नहीं रुका  । ‘बामन , कुत्ता , हाथी, नहीं जात के साथी’  वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए इस भूमिहार – ब्राह्मण ने जिस तरह मिश्रा-मिश्रा का भौंपू अपने ‘प्राइम टाइम’ प्रोपेगेंडा पर बजाया , उससे इस बात का जवाब अंततः मिल ही गया कि क्यूँ यह गपबाज आखिर हर एक अंजान  से ‘कौन जात हो भाई’ पूछता-फिरता है । (वैसे यह भी संभव है की रवीश यूं ही समाजवादी-मंडलवादियों की फेवरेट कास्ट सेंसस करवाता चलता हो )

 

कभी स्क्रीन को काला पोतकर मोरल हाई ग्राउंड कबाड़ने वाले इस कुख्यात दुर्भाग्यवादी ने जात-जात रटते-रटते अब मुसलमानो पर भी जाति की ग्राफ्टिंग कर दी है । वीरेंद्र ‘मयूर’ सहवाग सुना था , अब रवीश पाणे ने शाहरुख अनुराग मिश्रा भी सुना दिया । किसी ने कहा था कि तीस के बाद भी अगर आप वामपंथी हैं या वामपंथ लिए सिम्पेथी रखते हैं , तो लाज़मी है कि समाज आपको आपको पागल मान ले । बिखरे हुए सफ़ेद बाल और अफसोसिया मुस्कान इस हुलिये के साथ जाते भी हैं । कालिख पोतते-पोतते और गप्पे हाँकते-हाँकते लगता है पाणे ने अब जिहादियों की पोलपट्टियों पर सफ़ेद चूना पोतने का काम भी चालू कर दिया है । और क्यूँ नहीं ? आखिर प्रेस में वह अकेला है जो कपोलकल्पित फासीवाद से लड़ रहा है । आखिर हिंदुस्तान के हिन्दू राष्ट्र बनने में सबसे बड़ा रोड़ा वही बनकर खड़ा है । आखिर तथाकथित इस्लामोफोबिया की घटनाओं का पर्दाफाश कौन कर रहा है ?

 

वैसे नाम में रक्खा ही क्या है । शाहरुख वास्तव में न अनुराग मिश्रा निकला न अनुराग कश्यप । पाणे ने अगर कश्यप सरनेम लगा दिया होता तो बौराये-हुए डाइरेक्टर बाबू की किसी कांस्टेबल, माने सिस्टम , पर घोड़ा तानने की साध पूरी हो गयी होती । चूंकि कश्यप भी ब्राह्मण है , तो रवीश को ऐसा करने में बुरा नहीं लगता । लेकिन मोहम्मद शाहरुख पठान को ज़रूर दुख होगा शाहरुख मयूर खान न पैदा होने का । अगर होता तो हिन्दू आवाम ने उसे अब तक सर पर बैठा कर बादशाह मान लिया होता । और बेचारा शाहरुख है कि एक म्यूसिक विडियो बना कर बैठा है जो रिलीज़ भी नहीं होता !

 

लेकिन लाठी लेकर पत्थरबाज़ों से झूझ रहे कांस्टेबल दीपक दाहिया पर पिस्टल तानकर इस सूअर, मोहम्मद शाहरुख, ने भी अब थोड़ी-बहुत शोहरत हासिल कर ली है । धिम्मी पुलिस ने सेकंड इयर बी.कॉम. छोडकर मोजा फेक्टरी चलाने वाले इस जिहादी के शौक़ों और अरमानों का विस्तृत ब्योरा पेश किया है , ठीक वैसे ही जैसे पीआर फर्म्स,वकील या माँ करती हैं । शाहरुख को वर्जिश का चस्का है, उसने मोडलिंग में हाथ आज़माया था , पीयूबीजी खेलने और हुक्का पीने का शौक है ,म्यूसिक विडियो बनाया है , टिक टॉक पर स्टार है , हॅप्पी गो लकी लौंडा है , उस दिन लाल शर्ट पहने था , फलाना ढिमकाना इत्यादि । कहते हैं इच्छा उसकी हीरो बनने की थी (मुझे बड़े होकर सिर्फ चू बनना था ) , लेकिन शायद बीच में कहीं उसे शहीद होकर जन्नत की हूरों के साथ मौज उड़ाने की तमन्ना हो चली । कुल मिलाकर धिम्मी पुलिस ने यह साबित करने में कि शाह भाई एक नॉर्मल गाय या कहें ,रेगुलर जो,  ही हैं , कोई दुर्दांत आतंकवादी नहीं, कोई कसर नहीं छोड़ी है । वैसे अब समाज के एक तबके के लिए वह महानायक , और दूसरे के लिए खलनायक बन भी चुका है ।

 

पाँच दिन की तहक़ीक़ात में पुलिस को यह पता नहीं चल पाया है की शाहरुख साज़िशन दंगे की जगह पहुंचा, या टिक टॉक विडियो बनाते-बनाते । एक मानसिक दिवालिये अफसर ने यह भी खुलासा किया है कि अभी यह कहा नहीं जा सकता कि शाहरुख ने सिपाही पर पिस्तौल चलाने के लिए तानी थी , या वह सिर्फ धांसू प्रोफ़ाइल पिक के लिए पोज दे रहा था । बहरहाल उसने तीन गोलियां चलाईं और पाँच उससे बरामद हुईं हैं । चली हुई किसी को लगीं तो नहीं , यह ज्ञात नहीं है । यानि कुलमिलाकर कोई संगीन अपराध , जिसे अदालत में साबित किया जा सके, नहीं घटा है ।

 

हुआ भी है तो जवानी-के-जोश-में-खो-बैठे-होश टाइप का । बक़ौल समाजवादियों के आजकल देश का हर युवा ,चाहे हिन्दू, मुस्लिम या सिख, पिस्तौल खरीदना चाहता है ,और अगर मिल जाये तो खरीद भी लेता है । मेरे पास तो नहीं है , मुझे कोई दरकार भी नहीं , पर आपके पास ज़रूर होगी । मुंगेर से दो साल पहले मँगवाकर रखी हुई देसी पिस्तौल को लेकर दंगाक्षेत्र में जाना , धाँय-धाँय-धाँय कर तीन गोली चला देना और फिर पिस्तौल को सिपाही पर तान देना – धिम्मी पुलिस को यह सब इरादतन नहीं ,बाल-सुलभ अठखेलियाँ लग रहा है ।

मौला खैर करे इस डिपार्टमेंट , और इस शहर का !

 

शाहरुख के पड़ोसियों का कहना है वह अपनी बहन , जो की जाफराबाद में सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रही थी , उसकी रक्षा करने हेतु पिस्तौल-सहित रवाना हुआ था । लेकिन खुद शाहरुख का कहना है कि उसने सामने वाले पक्ष की तरफ से होने वाले पथराव से विचलित होकर पिस्तौल निकाली थी । अगर आपको ये दलीलें फर्जी लग रही हैं तो आप हिन्दुत्व के पोषक हैं , और शान्तिप्रिय समुदाय से नफरत करते हैं ।

 

पुलिस के अनुसार शाहरुख कोई हिस्ट्री-शीटर नहीं है । उसके बाप पर ज़रूर एनडीपीएस (नरकोटिक्स) के दो केस चल रहे हैं । पर उसका बाप तो ,जो कि सिख था, लव जिहाद का शिकार भी रहा है । परिवार में प्यार,सेक्युलरवाद और फेमिनिज़्म का बड़ा महत्व है – विरले ही कोई मर्द कन्वर्ट करता है लड़की के प्यार मे ! ज़ाहिर है नया मुल्ला और उसका पिल्ला ज्यादा कट्टर होंगे । फेमिली, खासकर ननिहाल, के नार्को से जुड़ी छेनु गेंग से घनिष्ठ संबंध हैं ।लेकिन इस सबसे कुछ साबित नहीं होता ।

 

ध्यान रहे इसी तरह की बातें छौंकने के कारण नवंबर में इस पुलिस बल को तीस हजारी के वकीलों ने कुछ कड़े सबक सिखाये थे । ट्रम्प के दिल्ली रहते हुए भड़के दंगों और उसके बाद के पुलिस के रवैये ने दिखला दिया है कि यह फोर्स किस लायक है । अब शाहरुख के ह्यूमन ट्रेट्स को प्रेसवार्ता करके प्रचारित करके धिम्मी पुलिस ने खुद को रवीश पाणे के साथ कतारबद्ध कर लिया है – सारे रंगरेज एक तरफ ! आओ जिहादियों को इंसान साबित करें । अपनी आँखों पर और उनके अपराधों को सफ़ेद पर्दे या काली स्क्रीन से ढक दें ।

 

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