(नौकरी तो बोस ने भी छोड़ी थी , पर वह बात कुछ और थी )
“बहुत सर-सर हुआ सर , अब सर उठा के चलेंगे,
आगे पढ़ेंगे , आगे बढ़ेंगे ,
व्यापार करेंगे , कहानियाँ गढ़ेंगे ,
मन की सुनेंगे , मन की कहेंगे ,
क्रांति लाएँगे , क्रांति बनेंगे,
जितना बचा है जीवन , उसे खुल कर जिएंगे ”
और यह कहकर उसने जो सरकारी चोला ओढ़ रखा था , उसे भरी जवानी में उतार फेंका । जो डॉग कालर बड़े गर्व से गले में कभी बांधा था , उसे खोल डाला । अपना ज़मीर , वक्त, पुरुषार्थ जो उसने बिग ब्रदर के पास गिरवी रखा हुआ था , उसे छुड़वा लिया ।
शाहीन बाग वाले मांगते रह गए , हमारा एक दोस्त कल आज़ाद हो गया ।
जो बंधे हुए फील करते हैं , उनका पट्टा और टाइट हो गया ।
उसका जीवन अब सार्थक पथ पर अग्रसर है ।
बंधुआ निरर्थक , अनंत अंधेरे में चलते रहेंगे , अफसोस कि कहीं नहीं पहुचेंगे ।
उसके जीवन में संघर्ष समाप्त नहीं हुआ है , चूतड़ उसे अब भी घिसने पड़ेंगे । पर अगर वह ताउम्र लेटे , लेटे खाट भी तोड़ता रहे तो भी आनेवाली नींद और देखे हुए सपने उसके अपने होंगे । बंधुआ विभागाध्यक्ष भी बन जाएं तो भी परतंत्रता का हलवा ही ठूसते रह जायेंगे ।
जो इस चिल्ल-पौं से आज़ाद हो गया , उसको इक्कीस तोपों की सलामी । जिसने राइटिंग ऑन द वाल को न सिर्फ देखा ,पढ़ा और समझा , बल्कि उसपर उचित कार्यवाही भी कर डाली , ऐसे दिव्यदृष्टा की जय हो !
तेरे लिए क्या कहें , ए दोस्त, तेरे लिए तो –
अब न ट्रांस्फर का टेरर है ,
न रिपोर्टों की खड़खड़,
न पोस्टिंग का चक्कर है ,
न डिक्लेरेशन का डर ,
अब विजिलेन्स तुझसे बेखबर है ,
और कंडक्ट रूल्स हो गए बेअसर ।
और रहे तुम, आम आदमी, सिस्टम के कुकुर , तो चलो ड्यूटि के नाम पर थोड़ी कुरकुर और कर लो । दो-चार रिपोर्टें और भेज देना । एसीआर की खातिर बॉस की थोड़ी खुशामद कर लेना । ऊपर और नीचे बैठे गदहों को थोड़ा और झेल लो । हर रोज़ , हर समय जो आत्मा तड़प रही है , उस अकाट्य , अच्छेद्य , अदाह्य , अक्लेद्य, अशोष्य , नित्य, अचल, सर्वव्यापी , स्थिर रहने वाली और सनातन आत्मा को सरकार की सेवा में थोड़ा और कष्ट दे लो । अपने खून से सींच दो अपने डिपार्टमेंट की फाइलों को , क्या पता उद्धार ही हो जाए ।
ऐसा नहीं है कि जो कल छोड़ गया , वह निकलने के लिए भर्ती हुआ था । कुछ ऐसी घटनाएँ घाटी होंगी या ऐसे लोगों से मिला होगा जो उसका मन ही बदल गया । फिर ऐसा भी नहीं है कि निकल कर जाने वाले फैजल और कन्नन ही बनते हैं । पीएसए झेलकर शेख अब्दुल्लाह की तरह नज़रबंद होने में , और शहर-शहर भटकते हुए लोकतन्त्र की दुहाई देकर गिरफ्तारियाँ देने में एक अलग ही रोमांच है । अपनी आवाज़ बुलंद हो , अपनी डपली और अपना राग हो – इससे बड़ा मोटिवेशन भला और क्या होगा ? रिटर्न चेक करने में , कदमताल करने में और एमपी-एमएलए के सामने हाथ जोड़ने में भी किसी-किसी गीदड़ को सुख ज़रूर मिलता होगा , लेकिन बहुत से हैं इस जमात में जो अब उकता गए हैं । बहुत से हैं जो पुनः पंख उगाकर उड़ने के स्वप्न देख रहे हैं । कई को आज़ादी की सूखी रोटी पुकार रही है । इस हफ्ते को सेल्फ-एपरेसल सप्ताह के तौर पर मनाओ । कुलबुलाहट अगर ज्यादा है , तो एक्ज़िट स्ट्रेटेजी बनाओ । जीवन एक ही है , और योगदान देना ही है ,तो अपने तरीखे से दो ।
आज़ाद अब खुल कर लिख सकेगा , बोल सकेगा, भौंक सकेगा – सरकार का पक्ष,विपक्ष माने नहीं रखता । बँधुआ-गण केवल काट सकते हैं ,वह भी हर -किसी को नहीं , बस उसी को जो नियमानुसार फस रहा हो या जो सत्ता की नज़र में गिर जाये ।
पर यह सब बाद की बात है , फिलहाल के लिए तो जाने वाले को सेल्यूट , और रहने वालों को, जिसमे कई फसे हुए भी हैं , उनके कर्तव्यों का एक ताने भरा रिमाइंडर ।