हाय रे बदनसीब घोड़ा !
लहलहाते खेत के सामने खड़ा
पर चेहरा मोड़े हुए सूनी सड़क की तरफ ,
जिसे वह देख भी नहीं सकता ,
उसकी आँखों पर है पर्दा पड़ा ,
क्यूँ है उसकी आँखों पर चमड़ा चढ़ा ?
बस क्या उतना ही देखे-समझे अश्व ,
जितना उसका मालिक देता है पढ़ा ? (1)
पीछे भले सरसों का लहलहाता खेत है,
पर मुझे सामने ही देखना है ,
पीछे देख भी रहा होता तो क्या ही दीख जाता ?
आँखों पर मेरी चमड़ा चढ़ाया है
किसी कमबख्त ने ,जो खुद को
मालिक कहता और मानता है मेरा ।2।
वह सुस्ता रहा है ठंडी हवा में ,
तांगे पर ऐसे लोटा पड़ा है,
मानो मृत्यु-शय्या पर भीष्म पड़े हों ,
सपनों में भोग रहा होगा स्वर्गिक सुख ।
मैं भी ढकी हुई अपनी आँखों से देखता हूँ
भविष्य , वर्तमान भले मेरी दृष्टि में नहीं ,
जिस दिन लग गया मौका
लगाम चबा जाऊंगा,
आँखों पर लगा चमड़ा झटक दूंगा ,
निकल भागूंगा इस टमटम की बंदिश से ,
सवारी जाये भाड़ में ,
जाते -जाते धरूँगा ऐसी दुलत्ती इस
तथाकथित मालिक के पिछवाड़े पर
कि घोड़ा भुला मुझे गधा ही मान बैठेगा ।3।
इसे नाज़ बहुत है अपने घोड़ा होने पर ,
इसे मालूम है मुझसे अधिक बलशाली ,
चपल और द्रुतगामी है ,
यह भाग सकता है कभी भी ,
गठान खोल सकता है,
पर बांध नहीं सकता,
खुद भले आज़ाद हो जाये,
मुझे ग़ुलाम नहीं बना सकता,
इसी एकतरफा रिश्ते ने
मुझे इतनी हिम्मत दी है,
कि मैं चाबुक भी बरसाऊँ,
जमकर बोझा भी ढुलवाऊँ,
इसे बंधक भी रखूँ,
और बिना किसी डर के
घोड़े बेच कर सो जाऊँ ।4।
Carry on with your attitude. I wish you could make it public so that animal lovers can do something to alleviate the misery of the horse and all the beasts of burden. The poor horse deserves more and at least we must admit that the British treated them royally and with compassion and love.
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make what public Sir ?
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