कड़कड़ाती ठंड पड़ रही है आज,
चलो ! शाहीन बाग़ चलते हैं,
गरमा-गरम बिरयानी बंट रही होगी,
थोड़ी जम कर चाँप देंगे,
पाँच सौ का गांधी मिल जाए टॉप-अप में,
तो आज़ादी-आज़ादी भी जाप लेंगे,
गुस्से में तमतमाती कुछ सूरतें टाप लेंगे,
भौंपू में भुनभुनाती धमकियाँ भाँप लेंगे,
डर-सर्दी के डबल असर से परवान चढ़ गयी हैं खूबसूरतें !
सुना है शाहीन बाग में बहुत सस्ती बिक रही है नफ़रतें ।10।
चाय-सुट्टे उड़ाते कुछ अर्बन-नक्सल मिल जायेंगे,
गरम कंबलों में चिपके हुए कुछ जोड़े दिख जाएंगे,
कुछ छद्म-सेकुलर चमगादड़ टेंटों पर उल्टे टंगे,
कुछ धिम्मि हिजड़े खुशामद के कीचड़ में बुरे फंसे ,
कुछ नरम दिल जज़्बातों की लहरों में बहते हुए,
कुछ पढे-लिखे समझदारी के रेगिस्तान में बहके हुए ,
कुछ औलादें तैमूर – औरंगजेब की,
कुछ चेले इकबाल- फैज के,
‘हम देखेंगे’’ कहकर इतराकर आँखें दिखाते हुए,
‘यूनान-मिश्र-रोमा’ को दारुल इस्लाम बनाते हुए,
दिन-दहाड़े, रात-बिगाड़े मोमबत्तियाँ जला रहे होंगे ,
खुल्ले-आम कागजों पर भ्रम फैला रहे होंगे ,
तिरंगे ,राष्ट्रगान की आड़ लेकर,
जागी मिल्लत को रोज़ रात जगा रहे होंगे,
कवच-कुंडल पहनकर संविधान का,
नारा लगाकर बाबासाहब का,
लोकतन्त्र को हिटलरशाही बता रहे होंगे ,
संसद ,कानून की धज्जियां सरेआम उड़ा रहे होंगे । 28।
ठंड बहुत कड़ाके की है आज,
चलो ! शाहीन बाग चलते हैं ,
पानी की बोतल में भरकर व्हाइट रम ले चलेंगे,
नशा करके ही जो कहना है वह सच कह सकेंगे,
शिखंडियों की आड़ में जो छिपा हुआ उन्माद है,
जिसे कह रहे आज़ादी पर असल में जिहाद है ,
जो समझ सके नहीं अब तक धर्म के इतिहास को,
वो बैठे हैं लेकर ठंड में मानव एकता की आस को ।36।
चलें आज ही यह मुफ्तखोरी का तमाशा देख आयें ,
थोड़ी सी अपनी भी बेरोजगारी ज़ाया कर आयें ,
कौन जाने किस दिन दिल्ली पुलिस ज़िंदा हो जाये ,
अवरुद्ध यातायात को सुधारने पर आमादा हो जाये ,
चलें थोड़ा क्रांति-पर्यटन हम भी कर आयें ,
मिल जाए सस्ता ग्रास तो सेवन कर आयें,
सुन लें कुछ उद्बोधन कि कब कयामत हो जाये ,
इससे पहले कि स्वरा,बरखा के सपनों पर पानी फिर जाए ।44।
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