तुम समझो उनके द्वारा शासक को हिटलर कहने का अर्थ,
वो पूछ रहे हैं नाजी (क्या हो तुम ?) तुमसे , वोट किया क्यूँ व्यर्थ ?
वो चीख-चीख कर बोल रहे हैं तुम हो बकरी-भेड़,
मंदिर की चाहत में बोया है तानाशाही का पेड़ ।4।
समझ-बूझ कर (लेफ्ट की) उम्मीदों पर किया है तुषारापात,
उबल रही अब उनमे नफरत, बुरी लगी ये बात,
दीन-हीन, निर्बल-विकल, क्यूँ-कैसे हुई (तुम्हारी) मजाल ?
क्यूँ फसे नहीं उसमे जो उनने बिछा रखा भ्रमजाल ?(8)
अब हर विपदा ,हर झटके पर तैयार हैं उनके व्यंग्य,
झेलो उसको बांधा है जो ग्रीवा पर भुजंग ,
प्याज़ बढ़े गिरे अर्थव्यवस्था, चाहे आए बाढ़ ,
कौन ये ज्ञानी हैं जिनके सदैव शब्द-बाण तैयार?(12)
कौन ये जो बहुमत का यूं उड़ा रहे उपहास ,
कौन हैं जिनका लोकतन्त्र में रहा नहीं विश्वास ?
कौन हैं जिनको पची नहीं है मई उन्नीस की हार ,
कौन हैं जिनको नहीं दिखता है उत्पीड़न सरहद पार ? (16)
कौन हैं जिनको राष्ट्रवाद है कभी नहीं स्वीकार ?
कौन हैं जिनने किया है अपने इतिहास का बंटाढार?
कौन हैं जिनको आज़ाद कश्मीर के नारे हैं स्वीकार ?
कौन है जिनके जेहन में है पलता (बहुसंख्यकों से) प्रतिकार? (20)
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