अरुंधती रॉय के रंगा-बिल्ला मुझे मिल गए
पुलिस पर फेंकने के लिए पत्थर बीनते हुए
हाथों में पेट्रोल बम और तलवारें भी थीं
मैंने पूछा मेरा शिकार करोगे क्या ?
ऊं-ऊं करके लगे गीदड़ों की तरह रोने
बोले हमारी जोड़ी जिहादी-वामपंथी की है
तुम तो ज़िंदा हो
तुम्हारी सांसें चल रही हैं
न आस्था अस्त हुई है
न हौंसले पस्त हुए हैं अब तलक
तुम्हारा गोश्त हमारे लिए हलाल नहीं है
हाँ , अगर तुम धिम्मी हो जाओ
तो हमारी दावत हो जाए
एक-दो मंदिर तोड़ दो
कुछ मूर्तियाँ भंग कर दो
देवी-दावताओं-रस्मों का अपमान कर दो
औरंगजेब का बखान कर दो
तो हमारे कुछ काम आओ
तुम्हारी हड्डियां फिर हम दफना देंगे
फिर उस ज़मीन को कब्ज़ा लेंगे
एक दिन पूरी दुनिया कब्रिस्तान होगी
हर कोई रंगा- बिल्ला या उनकी औलाद होगी
एक धर्म होगा एक ही होगा इबादत का तरीक़ा
फिर कोई न जन्मेगा प्रताप-शिवा सरीखा
अट्टहास के स्वर में मैंने उन्हे चेताया
देखो ,मेरी कलम में आग है
वह एक धधकती मशाल है
एक मशाल से लाखों और जला दूंगा
सोये पड़े हिंदवासियों को जागरूक बना दूंगा
हर एक के पास फिर चलती कलम होगी
उसकी ज्वाला में भस्म तुम्हारी बदनीयत होगी
रंगा -बिल्ला तुम और तुम्हारी तमाम वो किताबें
जो सिर्फ एक धर्म एक धारा
एक ही सच्ची राह एक ही ईश्वर
के होने का दुष्प्रचार करती हैं
दूसरों को बतलाती हैं मिथ्या
पर हमें तो दिखता है प्रभु हर तरफ
कलम में और कलमे में
मशाल में और मंदिर में
माँ में और मय में
शक्ल में और शून्य में
तुम में और खुद में
यहाँ तक कि अरुंधती रॉय में भी
(कविता में कोई कौमा , विराम, पैरा इत्यादि नहीं है )
कौन है जागरूक ?
हर वह भारतीय जो ये जानता – समझता है कि कैसे वामपंथी और बाहर से आने वाले कुछ आक्रांता धर्म हमारी जीवन शैली, पूजा पद्दती , देश और समझ को निगल लेना चाहते हैं । सदियों से ये खेल आपके सामने खेला जा रहा है , पर आप इसको दरकिनार करते आ रहे हैं । अब वक्त आ गया है कि पलटवार करें । यह धरा बचानी होगी और इस धारा के लिए लड़ना होगा । पहला हथियार कलम है । विरोधी अखबार, सोशल मीडिया और टीवी पर बहुत सक्रिय है । हमारे ही कुछ भेदी (धिम्मि ) बढ़-चढ़ कर इनका समर्थन करते हैं । हर जगह इनके प्रोपेगेंडा का मुक़ाबला करना होगा ।
इसीलिए उठो जागरूक , कलम उठाओ …..वरना सब नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगा । मेरे लिए नहीं, खुद के लिए उठो,उठाओ ।
🙏
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