पुलिस बेचारी और करती भी क्या ? (कविता)

पुलिस बेचारी और करती भी क्या ?

चारों दुर्दांत द्रुत धावक निकले,

पलक झपकते ही सौ मीटर भग लिए,

सिपाही उसेन बोल्ट तो नहीं ,

पर शार्प शूटर गजब के निकले ,

धाँय-धाँय, धाँय-धाँय किया चारों को ढेर ! (6)

पुलिस बेचारी और करती भी क्या ?

भीड़ से बचा लाए थे हत्यारों को ,

तीन से छ्ह का काला-शां सन्नाटा ,

सुरक्षा को लेकर विभाग था पूर्णतया सजग,

पर जनता को सदैव चाहिए त्वरित न्याय ,

मारती-कूटती, ठोकती-पीटती, कर देती चारों को ढेर ! (12)

पुलिस बेचारी और करती भी क्या ?

हथकड़ियाँ तक नहीं डालीं खूनी हाथों में,

पत्थर दिये उठाने, छीनने दिये हथियार,

इक़बालिया अपराधियों को खुद पर करने दिये प्रहार,

फिर जब बहुत हो गया हास्य-विनोद ,

तो धाँय-धाँय,धाँय-धाँय,चारों वहशी ढेर ! (18)

पुलिस बेचारी और करती भी क्या ?

दो सिपाही पत्थर खाकर हो गए चोटिल,

ज्यादा दूर निकल जाते तो पकड़ न आते,

न निशाना लगता ,सिपाही हाँफते रह जाते,

आत्मरक्षा में नहीं , करना पड़ा आवाम की खातिर,

धाँय-धाँय,धाँय-धाँय और चारों ढेर ! (24)

पुलिस बेचारी और करती भी क्या ?

कर रही थी क्राइम सीन रीकन्स्ट्रक्षन,

फिर स्पेशल कोर्ट में चलता स्पीडी ट्रायल,

वकील,दलील,अपील,रीव्यू में फैसला फसा रहता,

ऑन द स्पॉट हो गया आज न्याय,

धाँय-धाँय,धाँय-धाँय ,चारों बलात्कारी ढेर ! (30)

चलो पब्लिक को कुछ तो मिला- सस्ता प्याज़ नहीं , तो चार बलात्कारियों के जनाज़े ही सही । वीर-विहीन वसुधा को साईबराबाद के कमिश्नर साहब और उनकी टीम के रूप में  नए नायक मिले हैं । भीड़तन्त्र में अब हर मामले में  ‘फैसला ऑन द स्पॉट’  की उम्मीद रखी जाएगी । पुलिस और मंत्रियों पर रात के 3 बजे क्राइम सीन रीकन्स्ट्रक्षन रखने का दबाव बनेगा । हो सकता है ऊंघ रही न्यायपालिका की नींद भी खुल जाए । शायद आज के इस सरकारी हत्याकांड का यही एक सुखद परिणाम निकल कर आए ।

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