नमस्कार बोन्धु-बांधवों,
मैं अभिनव पंचोली ,
आज मतदान दिवस है , इस मौके पर मैं अपनी कविता पढ़ता हूँ – शीर्षक है – आज वोट है शहर में :
आज वोट है शहर में ,
है बंधा हुआ किसी खूँटे से हर बकरा ,
कोई पैसे लेकर मोल बिका है ,
कोई सरेंडर किया है भाँप कर खतरा ।4।
जात-धर्म की रस्सी है सबकी ग्रीवा को खींच रही,
घृणा,ज़िद और अफवाहें हैं इस समाज को सींच रहीं,
आज चाहे हरियाली में बंधा हुआ है बकरा लाचार ,
होना इसे हलाल ही है ,बस मन जाने दो ये त्योहार ।8।
आज पड़ने हैं वोट तो मतदाता बना है तारणहार,
बस आज ही तक खुला हुआ है लोकतन्त्र का हाट-बाज़ार,
नेतागण की ईद –दिवाली होगी मतगणना के दिन ,
कैसे जमे यह खेल-तमाशा आप लोगों के वोट दिये बिन ।12।
वैसे तो भारत में प्रतिदिन कहीं न कहीं मतदान होता ही रहता है । इस लिहाज से हर दिन मतदान दिवस हुआ ।
पर आज आप घरों से निकालिए और लोकतन्त्र की झण्डाबरदारी कीजिये ।
जाइये कतार लगाइये, अंगुली पर स्याही पुतवाइए, पूरे उत्साह से बटन दबाइये, किसी नेता-मंत्री का करियर बनाइये ।
लेकिन इस सब में अपनी हैसियत भी जानिए, और जानते हों तो स्मरण रखिए । जानिए की आप प्रजा हैं , या जनता जनार्दन ; मूकदर्शक हैं , या मूकनायक , वादों के उपभोक्ता भर हैं या भारत भाग्य विधाता !
जो भी हैं अपनी असलियत पता रखें । इससे लोकतन्त्र का स्वास्थ्य ठीक रहता है और आपके हित भी सुरक्शित रहते हैं ।
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Nice, aaj ki hakikat bechara matdata
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