(I) अपनों ने खेली अपनों संग होली
——————————
जलियाँवाला ! सौ साल हुए !
जाने कितने वहाँ हलाल हुए,
सौ साल हुए हरमिंदर में
डायर का इस्तकबाल हुए;
भारतीयों के हत्यारे को क्यूँ,
किसने किया सरोपा भेंट ,
क्यूँ सिख बतलाकर उस खूनी की
और चढ़ाई ऐंठ ? (8)
दस मिनट में बरसीं थीं सत्रह सौ गोली,
बैसाखी दिन अपने खेले अपनों के लहू से होली,
क्या वो गुरखे शिकारी कुत्ते थे ,
जो बस अङ्ग्रेज़ी आका की सीटी सुनते थे ?
अरे, बनते तो बड़े लड़ाका हैं ,
अंधाधुंध जिन्हें मारा वो निहत्थे थे!
थे पच्चीस बलोची भी उन हत्यारों में,
ब्रितानिया का डंका बजाने वालों में ।16।
सिख भी थे , थे राजपूत भी,
मार्शल रेस कहलाने वालों में ,
न आयी पर उस दिन शर्म ,
शिद्दत से हुक्म बजाने में ,
मुट्ठीभर अंग्रेजों संग
तैनात थे अपने दो सौ भाई,
मत पूछो जनरल डायर ने थीं,
खुद कितनी गोलियां बरसाईं? (24)
इन हत्यारों के नामों को ,
इन सिपाहियों की पहचानों को,
मार्शल क़ौमों के बड़े बखानों को ,
इतिहास ने कहाँ शर्मसार किया,
गुमनामी की चादर ढककर,
गुनाहों को नज़रअंदाज़ किया,
और डायर-ओ’ड्वोयर को ही केवल,
सारे जुर्म का जिम्मेदार किया ? (32)
(II) बस गोलीकांड नहीं था
——————————–
कुछ फिसल गए ,कुछ लेट गए ,
दीवाल चढ़े, कुएं में कूद गए ,
क्या बच्चे- क्या बूढ़े ,
सबकी शामत थी आयी ,
अपनों पर चुन-चुन कर
अपनों ने मौत थी बरसाई ।38।
जो चीखें निकली थीं कुएं से,
अब चुप हो गईं क्या ?
जो खून के धब्बे चिपके थे दीवारों पे,
वो मिट गए क्या ?
जो नाचे थे नर-पिशाच बाग़ में ,
वो अब भी दिखते हैं ?
जो दशहथ, जो घृणा व्यापी थी उस दिन,
वो घट गयी क्या ? (46)
लाशें पड़ी रहीं धूप में,
कोई दावेदार नहीं था,
रेंग-रेंग सरके सड़कों पर ,
अपना स्वाभिमान नहीं था?
एक नस्ल का दूजी संग
यह मानवीय व्यवहार नहीं था,
जो घटा था अमृतसर में उस दिन,
केवल गोलीकांड नहीं था ।54।
कविता पाठ-
#जलियाँवाला #तेरहअप्रेल #1919 #अमृतसर
#डायर #गोलीकांड #हर्मिन्दर