जलियाँवाला ! सौ साल हुए ! (कविता)

(I) अपनों ने खेली अपनों संग होली

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जलियाँवाला ! सौ साल हुए !

जाने कितने वहाँ हलाल हुए,

सौ साल हुए हरमिंदर में

डायर का इस्तकबाल हुए;

भारतीयों के हत्यारे को क्यूँ,

किसने किया सरोपा भेंट ,

क्यूँ सिख बतलाकर उस खूनी की

और चढ़ाई ऐंठ ?  (8)

दस मिनट में बरसीं थीं सत्रह सौ गोली,

बैसाखी  दिन अपने खेले अपनों के लहू से होली,

क्या वो गुरखे शिकारी कुत्ते थे ,

जो बस अङ्ग्रेज़ी आका की सीटी सुनते थे ?

अरे, बनते तो बड़े लड़ाका हैं ,

अंधाधुंध जिन्हें मारा वो निहत्थे थे!

थे पच्चीस बलोची भी उन हत्यारों में,

ब्रितानिया का डंका बजाने वालों में ।16।

सिख भी थे , थे राजपूत भी,

मार्शल रेस कहलाने वालों में ,

न आयी पर उस दिन शर्म ,

शिद्दत से हुक्म बजाने में ,

मुट्ठीभर अंग्रेजों संग

तैनात थे अपने दो सौ भाई,

मत पूछो जनरल डायर ने थीं,

खुद कितनी गोलियां बरसाईं? (24)

इन हत्यारों के नामों को ,

इन सिपाहियों की पहचानों को,

मार्शल क़ौमों के बड़े बखानों को ,

इतिहास ने कहाँ शर्मसार किया,

गुमनामी की चादर ढककर,

गुनाहों को नज़रअंदाज़ किया,

और डायर-ओ’ड्वोयर को ही केवल,

सारे जुर्म का जिम्मेदार किया ? (32)

(II) बस गोलीकांड नहीं था

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कुछ फिसल गए ,कुछ लेट गए ,

दीवाल चढ़े, कुएं में कूद गए ,

क्या बच्चे- क्या बूढ़े ,

सबकी शामत थी आयी ,

अपनों पर चुन-चुन कर

अपनों ने मौत थी बरसाई ।38।

जो चीखें निकली थीं कुएं से,

अब चुप हो गईं क्या ?

जो खून के धब्बे चिपके थे दीवारों पे,

वो मिट गए क्या ?

जो नाचे थे नर-पिशाच बाग़ में ,

वो अब भी दिखते हैं  ?

जो दशहथ, जो घृणा व्यापी थी उस दिन,

वो घट गयी क्या ? (46)

लाशें पड़ी रहीं धूप में,

कोई दावेदार नहीं था,

रेंग-रेंग सरके सड़कों पर ,

अपना स्वाभिमान नहीं था?

एक नस्ल का दूजी संग

यह मानवीय व्यवहार नहीं था,

जो घटा था अमृतसर में उस दिन,

केवल गोलीकांड नहीं था ।54।

कविता पाठ-


#जलियाँवाला #तेरहअप्रेल #1919 #अमृतसर

#डायर #गोलीकांड #हर्मिन्दर

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