जलियाँवाला ! सौ साल हुए ! ,
कब,कितने,कहाँ हलाल हुए,
सौ साल हुए हरमिंदर में,
डायर का इस्तकबाल हुए,
कौम के हत्यारे को क्यूँ, किया सरोपा भेंट ,
क्यूँ सिख बतलाकर इस खूनी की और चढ़ाई ऐंठ ? (6)
दस मिनट में बरसीं थीं सत्रह सौ गोली,
बैसाखी पर खेले थे अपने अपनों से होली,
क्या वो गुरखे शिकारी कुत्ते थे ,
जो बस मालिक की सुनते थे ?
बनते तो बड़े लड़ाका थे ,
लड़ने को मिलते बस निहत्थे थे ? (12)
थे पच्चीस बलोची भी हत्यारों में,
आका का आदेश सरमाथे पर रखने वालों में ,
कुछ लेट गए ,कुछ फिसल गए ,
दीवाल चढ़े, कुएं में कूद गए ,
क्या बच्चे- क्या बूढ़े ,सबकी शामत थी आयी ,
अपनों पर चुन-चुन कर अपनों ने मौत थी बरसाई ।18।
कुछ राजपूत –सिख सैनिक भी थे,
मार्शल कौम का ढ़ोल बजने वाले,
किसी को हाय लजा न आयी,
शिद्दत से की हुक्म बजाई,
मुट्ठीभर अंग्रेजों संग तैनात थे अपने दो सौ भाई,
पूछो डायर ने खुद थी कितनी गोलियां बरसाई ।24।
इन अपनों के नामों को ,
इन सिपाहियों की पहचानों को,
क़ौमों के बड़े बखानों को ,
क्यूँ इतिहास ने नहीं शर्मसार किया,
बस डायर-ओ’ड्वोयर को ही क्यूँ,
सारे जुर्म का भागीदार किया ।30।
जो चीखें निकली थी कुएं से,वो गिन लीं क्या ?
जो खून के धब्बे थे दीवारों पर,वो मिट गए क्या ?
जो नाचे थे पिशाच बाग़ में ,
वो कहाँ है अब ?
जो दशहथ व्यापी थी देश में ,
वो घट गयी क्या ? (36)
लाशें पड़ी रही धूप में, कोई दावेदार नहीं था,
रेंग-रेंग कर चले सड़कों पर ,कोई स्वाभिमान नहीं था,
एक नस्ल का दूजी संग यह ,मानवीय व्यवहार नहीं था,
जो घटा था अमृतसर में उस दिन,केवल हत्याकांड नहीं था ।42।