चंद उखड़े हुए पेड़,
एक मरा हुआ कौवा,
अगणित लाशें– जिनके अपने मारे गए
उन्होने गिनी तो होंगी, पर कहें कैसे ?
जो बम डाल कर आए हैं, वह गिनें कैसे ? (5)
कुछ चिल्लाते हुए मीडिया एंकर,
उनके बगल में बैठे रिटायर्ड फौजी,
दोनों देशों के प्रधान मंत्री-
एक की उंगली तनी हुई नभ की ओर
दूसरे की आँखें जमीन का मुआइना करतीं ।10।
शत्रु का वह संवाददाता-नाम गफूर,
सधी मूछें , चिपके बाल,
चबा-चबा कर किया था ऐलान –
दो विमान गिराए ,दो पायलट गिरफ्तार ,
अपना मुच्छड़ था भी वैसे दो के बराबर एक शिकार ।15।
खुद के गिरे विमान का दर्द हमें टिका दिया,
कितना गिरा हुआ है ईमान यह भी जता दिया,
अपने मरहूम पाइलट को
न दर्जा दिया शहीद का,
न बताया दुनिया को हमारा दूसरा पाइलट कहाँ छिपा दिया ? (20)
अभिनंदन की तारीफ में कोई क्या शब्द गढ़े,
उसका पकड़े जाना शायद जंग का खत्म होना था,
एक परम वीर ,मुक़ाबले में सरफरोश,
गर्दिश में संभाले रहा होश ,
हर तस्वीर में लबालब भरा हुआ जोश ।25।
हर जंग ऐसी ही कुछ तस्वीरें छोड़ जाती है,
लाशें दफन होने
या दहन होने के बाद
हो कर रह जाती हैं किसी एक परिवार की,
समाज को मिलते हैं नेताओं के बड़बोले नारे,
नायक के तौर पर कुछ नए रणबांकुरे,
थोड़ा बहुत अस्त-शस्त्र-रणनीति का व्यर्थ ज्ञान,
खुद की सेना पर थोड़ा और अभिमान,
जवाब बहुत कम,सवाल नए और बहुत सारे,
उनमे सबसे अहम –हम क्या जीते क्या हारे ? (35)
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