भीगी बिल्ली बिलकुल भद्द पिटी हुई सी दिखती है । भयाक्रांत कुत्ते की दुम पिछले पैरों के बीच में दुबकी हुई रहती है । आप कितने भी बड़े पशु-प्रेमी क्यों न हों ,ऐसे हास्यास्पद सूरत-ए-हाल में बिना ठहाका लगाए नहीं रह सकते । खासकर तब जब कोई नितांत चालू लीडर ,जिसका धंधा ही पब्लिक का चूतिया काटना हो ,उसमे आपको एक भीगी बिल्ली और एक भयाक्रांत कुत्ते की छवि दृष्टिगोचर हो । वैसे भी सार्वजनिक जीवन जी रहे किसी भी इंसान पर हँसने और उसे कोसने से लोकतन्त्र मजबूत ही होता है ।
थूक कर चाटना एक घिनौना ,अपितु प्रभावशाली मुहावरा है । दैनिक जीवन मैं मैंने कभी किसी को ऐसा करते नहीं देखा है । हाँ कोई गुंडा अपने किसी शिकार को ज़बरदस्ती थुकवा कर चटवा दे तो बात और है । बीते दिनो एक स्वघोषित ,आत्ममुग्ध अराजकतावादी को इस तरह से घूम घूम कर पुराने थूकों को चाटते देखा । जिस हसीना को वो बाजारू कहा करता था और सरेआम ,दिन-रात,नुक्कड़ –चौराहों पर गरियाया करता था ,उसी से प्रणय निवेदन की खातिर इस एजेंट ऑफ चेंज ने खुद के सारे थूकों को चाटकर अपने अस्तित्व का मखौल उड़ा डाला ।
वैसे तो कहा जाता है कि प्यार और जंग में कोई नियम नहीं होते । पिछले कुछ दिनों ने सिखाया कि जंग को पैशाचिक होने से रोकने के लिए जेनेवा कन्वेन्शन है । रही बात प्यार की तो आग दोनों तरफ लगनी चाहिये । उसपर किसी का ज़ोर नहीं – न समय का न समाज का । पर एकतरफा ललक जिससे सामने वाला सरमाथे पर न रखे ,वह प्यार नहीं है ,हवस है- रूप की ,सत्ता की या पैसे की ! एकतरफा प्यार में फड़फड़ा कर टेढ़ी-मेढ़ी हरकतें कर गुजरने वालों पर न सिर्फ डंडा चलता है ,बल्कि उनकी सुताई होने पर जगहँसाई भी होती है । चेप होने वाले प्रेमी और दूसरी पार्टी से गठबंधन के लिए मिन्नतें करने वाले क्रांतिकारी, समाज में उपहास का पात्र बन जाते हैं ।
खैर कभी ये साहब चुन-चुन कर देश के हर खंबे को सींचा करते थे । अक्षय कुमार का वह गाना – सींचेंगे सारी सारी रात ,टांग उठा के इन्ही की शान में लिखा गया है । आज उसी खंबे को ,जो जल निकासी हेतु इनका प्रिय स्थान हुआ करता था ,जिसको इन्होने इतना सींचा कि उसके आसपास घनी घास उग आई थी , यह पूजने को तैयार बैठे हैं । खम्बे के सामने आसन कई दिनों से लगा रखा था ,खाँस-खाँस कर आवाहन किया,छोटे-बड़े सभी खंबों से निवेदन किया ,जीभ निकली,करतब दिखाये ,गांधी का नाम लिया ,हिटलर का भय दिखाया ,रोये ,गिड़गिड़ाए ….पर हा शोक ! खम्बा था या दरबार ,टस से मस न हुआ । जो पुजाए गए हैं ,उनमे और कुछ विशेषता हो न हो ,अहंकार प्रचंड मात्रा में होता है । आखिर में बड़े तिरस्कार झेलकर आसन उठाना पड़ा है श्रीमान युगपुरुष को ।
खैर उसके शब्दकोश में अपमान शब्द नहीं है । वह अभी भी उम्मीद पाले हुए है । कुटिल आदमी ,और गरजी नेता ,किसी भी हद तक झुक सकता है । और यह तो वह विलक्षण प्रतिभा है जिसकी खांसी उसकी वाणी से अधिक कर्णप्रिय है । जिसने अकेले दम पर लाल स्वेटर और मफ़लर की बिक्री कम करवा दी । जिसने सामाजिक कार्यकर्ता को धूर्त लोमड़ी का पर्याय बना दिया ।
ऐसे लोग जब जनता के हित में गठबंधनों और खुद के बलिदान की बात करते हैं तो अफसोस नहीं होता ,क्रोध आता है । अगर इतना खयाल है जनहित का तो सौदेबाजी क्यों ? परे हट जा और कर दे उस खंबे को समर्थन ,कर उनका प्रचार ,खाँस उनके लिए ।
ये नेता मुझे मंथरा की याद दिलाता हैं –दोनों के मन में कूबड़ है । हैसियत इनकी कुछ इतनी है –शहंशाहे शाह आलम ,अज दिल्ली ता पालम । पर आत्ममुग्धी का आलम ये है कि खुद को गांधी का अवतार मानते हैं । जयचंद ने संयोगिता के स्वयंवर-कक्ष के बाहर पृथ्वीराज का एक पुतला खड़ा किया था । उसी तरह दरबार के बाहर खड़े होकर नेता जी ने इंतज़ार किया वरमाला का ,पर मिली सिर्फ जूतमाला ।
खैर जितने शब्द इतिहासकर शाह आलम या पृथ्वीराज के पुतले पर खर्च करते हैं ,मैं उससे ज्यादा इस शून्य पर कर चुका हूँ । शून्य इसलिए कि दिल्ली मे शून्य ,हरियाणा में शून्य और पंजाब में शून्य । इसीलिए इतनी कुलबुलाहट और कौवों के क्रंदन के स्वर में राष्ट्रहित का हवाला । मज़े की बात यह है कि जब हसीना ने निवेदन स्वीकार करने के बजाय दुत्कार कर भगा दिया तो इस प्रार्थी ने पलक झपकाए बिना ही उसे दुराचारी और वेश्या और न जाने क्या क्या कह डाला । यह देश बदलने चला है ,खांसी ठीक कर ले पहले । यह युगपुरुष बनने चला है ,मनुष्य बन सके तो उपलब्धि होगी ।
nice article, to the point
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