क्या लाशों के सबूत मांगना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है ?
क्या बाहरी संकट के समक्ष झगड़ना हमारा नैसर्गिक व्यवहार है ?
क्या हर विजयगाथा को शंका से देखना हमारा राष्ट्रीय संस्कार है ? (3)
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शोक की घड़ी में हम रोने से अधिक चिल्लाते हैं,
अगर अपनों पर हो अत्याचार ,तो अपनों का ही दोषी ठहराते हैं ,
हज़ार सालों तक ग़ुलाम रहे ,फिर भी जानकर हर बार धोखा खाते हैं ।6।
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चिड़िया न देख द्रोण की अंगुली पर अटक जाना हमारा चरित्र है ,
युवराज को राज्यच्युत कर वनवास भेज देना कितना विचित्र है ,
ब्रह्म और माया के फेर मे पड़ा हमारा जीवन ही एक चलचित्र है ।9।