जल्दी में था जयद्रथ ,अर्जुन के
आत्मदहन का जश्न मनाने को,
शोकातुर किरीट भी भाँप न पाया,
हुआ खुद की चिता जलाने को ।1।
ग्रहण लगा था क्षणिक क्षितिज पर,
अभी अस्त कहाँ था सूर्य हुआ ,
भयाक्रांत कौरवों को राहत में,
घड़ियों का नहीं भान रहा । 2।
समय शेष था,समर शेष था,
सव्यसाची को धर्म निभाना था ,
ग्रहण हटा ,अंधकार छंटा,
जयद्रथ को सबक सिखाना था ।3।
रक्त बहाया ,पुत्र गँवाए,
छल से कर्ण पर तीर चलाये ,
युद्ध जीता ,राज्य भोगा ,
युग के श्रेष्ठ धनुर्धर कहलाए ।4।
अभी समय कठिन है, नहीं
सितारे संरेखित मेरे हित में,
पर खारिज कर दो,शोक मना लो
इतने भी नहीं हैं गर्दिश में ।5।
यूं सिरे से कर देना, नाकाम करार,
लानत देना हुनर की बरबादी पर बारमबार ,
जो टिका हुआ मैदान में झेल रहा है हर प्रहार ,
उसका ताज़ियत पढ़ देना ,बनकर नौहागर ।6।
शिकवे करना हमदर्द बनकर ,
गलतियों पर निकालना गालियां (अधिकार से)
क्षमताओं को एक पलड़े पर सजाना ,
दूजे पर बाट रखना विफलता का ,फिर मुसकुराना ।7।
खुद को भी निराश करता आया हूँ अब तक,
खुद को हैरान भी किया है ,
पर अपने सफ़र के टिकट अभी फाड़े नहीं हैं,
ज़िंदगी के बाग-बगीचे सब उजाड़े नहीं हैं ।8।
जलजले बड़े थे ,काफी बड़े पर
समाचारों में कुछ बढचढ़ कर पेश हुए ,
जिजीविषा पूर्ण प्रबल ,ताकत अभी शेष है,
उत्तरजीविता पर मेरी दृष्टि टिकी निर्निमेष है ।9।
गर किसी को जल्दी है,तस्वीर पर फूल चढ़ाने की,
रुकना होगा अभी आई नहीं है,बेला अश्क बहाने की ,
तीमारदार मिले हैं जो अब मुझको सींच रहे ,
ऐसे मददगार भी पाया हैं जो गर्त में से खींच रहे ।10।