जिससे जिरह करने पहुंचे ,उसी ने हमें गिरफ्तार कर लिया,
खुद के मचान पर खड़े शिकारी को नज़रबंद कर दिया,
यह हास्यास्पद होता अगर दाल-रोटी जितना सामान्य न होता,
बहुत गुदगुदाता जो हर दिन उसके चर्चों का ऐसे बखान नहीं होता ,
यह शोकपूर्ण होता अगर सड़ी-गली लाश की तरह भद्दा न लगता,
यह झकझोर देता जो प्यूरो उपहास का पात्र सरेआम न होता ,
इस पर चर्चा होनी चाहिए थी अगर कोई निष्पक्ष मंच मिल पाता,
भविष्य की चिंता हो उठती अगर कैदी तोता कभी उड़ पाता ।1।
कभी इसके कप्तान –उप कप्तान में भीषण घमासान होता है ,
बड़े अफसरान का अब सर्वोच्च न्यायालय में ही दुआ –सलाम होता है,
कभी एक के बहाने कई बड़े पूंजीपतियों का कत्लेआम होता है,
अपने ही सिपहसालारों का मानमरदन सरेआम होता है,
कौन सी फ़ाइल पर, किस गति से ,कितना काम होता है ,
कहाँ के चुनाव सिर पर हैं ,यह इस तथ्य का अंजाम होता है ।2।
हथियार बन चुकी संस्था के इरादों को पस्त करना होगा,
शिथिल पद चुके सिस्टम को कुछ चुस्त करना होगा ,
जो अकड़ में बैठा है बपौती मान कर उसे अपदस्थ करना होगा ,
जो कीड़ा लग गया है सेहत में तो स्वस्थ होना होगा ,
सिर्फ ढांचा भर ही बचा है अब इसे ध्वस्त करना होगा,
ढलता सूरज फसा हुआ है क्षितिज पर , उसे जबरन अस्त करना होगा ।3।