वारदात करते समय संबिया ऑडी क्यू 7 चला रहा था । तीन साल बाद अदालत से बरी होने के बाद वह स्वयं ही एक सफ़ेद पॉर्श चलाकर अपने घर लौटा । यूं वो किसी ड्राईवर के साथ बैठकर भी जा सकता था लेकिन खुद गाड़ी चलाकर उसने बंगाली समाज और सिस्टम को जोरदार तमाचा जड़ दिया । अगर वह अपनी पेंट खोलकर अपने साजो-सामान के दर्शन भी करवा देता तो पब्लिक की इससे ज्यादा बेइज्जती नहीं कर सकता था । संबिया ने न सिर्फ यह दिखा दिया कि उसके बाप मोहम्मद सोहराब का राजनैतिक रसूख कितना अधिक है ,बल्कि यह भी कि बंगाल की पुलिस और शायद न्यायपालिका की असल हैसियत क्या है ।
13 जनवरी,2016 की बड़ी सुबह कलकत्ते के रेड रोड पर भारतीय वायु सेना का एक दस्ता गणतन्त्र दिवस पर होने वाली परेड की तैयारी कर रहा था । तभी एक तेज़ी से चल रही ऑडी एक नहीं ,दो नहीं बल्कि तीन-चार रोडब्लॉक को ध्वस्त करती हुई इस दस्ते में घुस गयी । दो कोरपोरल इस गाड़ी की चपेट मे आ गए – एक की दर्दनाक मौत मौके पर ही हो गयी थी और दूसरे को बहुत चोटें आयीं थीं । यह सारा मामला सीसीटीवी में कैद हुआ था । इसके अलावा वहाँ पर बीसियों वर्दीधारी वायु सैनिक मौजूद थे । पुलिस का भी एक दल मौके पर था जिसने दुर्घटना के बाद वाहनचालक को न सिर्फ भाग जाने दिया अपितु कुछ कागज फाड़ देने का अवसर भी दिया । वारदात के बाद करीब पाँच घंटे लगे पुलिस को नींद से जागने में –तब तक संबिया और और उसका परिवार घर से फरार हो चुके थे । हरकत में आई पुलिस ने मौका-ए-वारदात पर मौजूद वायु सैनिकों और सीसीटीवी फूटेज से इतर यह साबित करने का प्रयास किया कि ऑडी में तीन लोग सवार थे ,ताकि बेनिफ़िट ऑफ डाउट के चलते केस को कुछ हल्का किया जा सके ।
अंततोगत्वा पुलिस को मानना ही पड़ा कि गाड़ी में सिर्फ एक चालक,यानि संबिया ही सवार था । पर जब तक FIR हो पाती तब तक देर हो चुकी थी । बाद में संबिया के कुछ दोस्तों के हवाले से यह लीक किया गया कि उसने शराब पी रखी थी । पर तब इसकी पुष्टि संभव नहीं थी क्यूंकी मेडिकल मुआयने का समय निकल चुका था । शराब की आड़ ली जा रही थी क्यूंकी शायद असली इरादा छिपाना था । अब तक यह मामला भारत में अन्यत्र हो सकने वाले किसी भी अपराध की तरह ही था । हमारे देश में प्रभावशाली अपराधियों के मामलों में पुलिस की हैसियत किराए के टट्टू या फिर अंजान बारात में नाचने वालों से ज्यादा कुछ नहीं है ।
अदालत ने संबिया को न 302 के तहत हत्या का दोषी पाया ,न 304(II) के तहत इरादतन हत्या का और न ही 307 के अंतर्गत हत्या के प्रयास का । संबिया की गलती करार दी गई है महज रैश ड्राइविंग और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना । दोनों आरोप किसी अय्याश की तिजोरी में रखे हरामखोरी के गहनों जैसे लगते हैं । वैसे ही जैसे छोटे-मोटे शिकारी टट्टुओं की दीवारों पर सज़े बाघ और हिरण के सर । इस तरह का प्रॉसिक्यूशन रख पाई कलकत्ता पुलिस ,और ऐसा फैसला दिया निचली अदालत ने -दो साल का कारावास ,जो कि संबिया केस के दौरान ही भुगत चुका था और मृतक को एक लाख का हरजाना । ध्यातव्य रहे कि वायु सेना का मृत कोरपोरल 21 साल का अभिमन्यु गौड़ रेड रोड पर ड्यूटी निभा रहा था – उसकी कीमत सिस्टम ने लाख रुपया आँकी है । और हाँ ,अदालत ने संबिया पर सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचने के लिए दस हज़ार रुपये का जुर्माना भी ठोका है –उन रोडब्लोक्स का जो हत्या के दो साल बाद पुलिस ने सबूत के तौर पर कब्जे में लिए ।
निचली अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि पुलिस ने भावनाओं में बहकर केस तैयार किया और कहीं भी intent अथवा इरादे को साबित नहीं कर पाई ।यह भी कहा कि अभियोजन टक्कर का स्थान भी ठीक से इडेंटिफाय नहीं कर सका । मेडिकल रेपोर्ट्स पर भी कई सवाल उठाए गए ।
रेड रोड आज से नहीं ,1820 से ही –जब से अंग्रेजों ने उसे बनाया था – राज भवन से फोर्ट विलियम तक,हमेशा ही परेड रोड रहा है । द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उसे एयर स्ट्रिप के तौर पर भी इस्तेमाल किया गया था । वहाँ तेज़ गाड़ी चलाने का मतलब ही है बुरे इरादे पालना । उसपर भी संबिया ने तीन-चार रोड़ब्लाक उड़ाए थे –जो यह साबित करता है कि दस्ते तक पहुँच जाना कोई दुर्घटना नहीं थी ,बल्कि वही उसका लक्ष्य था । यह बात पुलिस नहीं समझती हो -ऐसा नहीं है । पर वह मजबूर है सरकार की तुष्टीकरण की नीति के चलते ।
यूरोप में 2014 के बाद से ही एक के बाद एक कई टेररिस्ट अटेक हुए जिसमे वाहन चालकों ने जानबूझकर अपने वाहन को द्रुत गति से भीड़ में घुसाया और मासूमों को कुचल डाला । रेड रोड पर भी यही हुआ । इरादा यही था । कोई भी जिहादी किस इरादे से हत्याएँ करता है- जन्नत की तलाश और हूरों की हसरत के लिए । कलकत्ता पुलिस इस तरह के आरोप नहीं मढ सकती थी । बंगाल में तुष्टीकरण का माहौल है । अल्पसंख्यक वोट देशहित से बढ़कर हैं । अभिमन्यु गौड़ जैसे सवा सौ करोड़ भटक रहे हैं देश में – संबिया के बाप जैसे रसूखदार मुसलमान गेंगस्टर बहुत महत्वपूर्ण हैं सियासत के खेल में । इसीलिए तो पुलिस हर मोड पर केस को ढीला करती रही ।
कभी उसे सीसीटीवी फुटेज नासाज़ लगा क्यूँकि वह ओस से खराब हो गया था । कभी पुलिस ने ऑडी में तीन सवारों की कहानी गढ़ी । संबिया का न एल्कोहौल टेस्ट समय पर हुआ ,न घर की तलाशी उचित वक्त पर हुई । किसी भी आरोपी के मनोरोग से पीड़ित होने,या जिहाद के ओर उन्मुख होने के साक्ष्य छानबीन करने पर आसानी से ढूँढे जा सकते थे – पर ऐसा करके पुलिस को सियासी बवाल नहीं मचाना था । आप अगर रसूख वाले अल्पसंख्यक हैं बंगाल में तो खुदा आप पर मेहरबान हैं –कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता आपका ।
मारा गया वायु सेना कोरपोरल सूरत का रहने वाला था । दुश्मन से लड़ने का मंसूबा पालने वाले अभिमन्यु को एक सड़कछाप आवारा लौंडा अपनी महंगी गाड़ी से कुचल गया । उसका परिवार भी समझता है कि न्याय अब दूर कि कौड़ी है । पर उनके पास इस नपुंसक सिस्टम में ही रहकर लड़ने के सिवाय चारा भी क्या है ? पुलिस इस बेइज्जती के बाद बहुत उछल रही है । मीडिया के दोस्तों के चलते वह फेक आउटरेज परोस रही है –ऐसा दिखाने कि कोशिश में है जैसे अदालत का फैसला कुछ अजीब हो । अब न्यायमूर्ति तो उन्ही साक्ष्यों के आधार पर निर्णय देंगे जो अभियोजन पेश करेगा । यह रंडी रोना पुलिस की तकनीक है । केस का कबाड़ा कर दिया है ,आगे अपील करके हाइ कोर्ट का समय भी बर्बाद करेंगे ।
सबक बस इतना है कि बंगाल में रहने वाला हर आम आदमी यह याद रखे कि कोई भी अभिमन्यु चाहे वायु सेना में भर्ती हो जाये ,पर कोई भी संबिया आप पर कभी भी अपनी महंगी गाड़ी चढ़ा सकता है । उसपर सिर्फ रैश ड्राइविंग का ही आरोप लगेगा ।