श्रीराम को अभी और इंतज़ार करना होगा,
कितने दशक लग जाएँ कह नहीं सकते ,
न्यायपालिका का एक ढर्रा है,कुछ प्राथमिकताएँ हैं ,
न्यायिक प्रक्रिया की गति है इतिहास से भी मद्धम,
इंसाफ मिलने में कपड़े-जूते घिसा जाते हैं ,
आम आदमी के घर-बार बिक जाते हैं ,
रहे होंगे कहीं के प्रतापी नरेश सहसत्रों बरस पहले ,
भारतीय उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के तौर पर पूजते हैं ,
श्रीराम को विष्णुअवतार नृप होने के चलते नहीं ,
श्रेष्ठ मनुज होने के नाते माना-जाना गया है ।1।
गांधी का जंतर था- सबसे कमजोर को देखकर,
सोचो अगर हो भला उसका तो है नीति कारगर,
जन्मस्थान की बात उठना पुनः अवतार लेने जैसा ही है,
दिखाता है आस्था को भी होगा व्यवस्था से झूझना,
न्यायमूर्तियों की नज़र-ए-इनायत होगी तभी होगा फैसला,
राम के नाम पर नेतागण ,धर्मगुरु सेकते रहेंगे रोटियाँ ,
जैसे आम आदमी को सत्ता की सीढ़ी बनाया जाता है ,
कलयुग में भगवान भी अदालत में जा वादी बन बैठे हैं ,
इमाम-ए-हिन्द अवतरित हुए शख्स –ए-आम के रूप में ,
क्या तरीखा सूझा राम को भक्तों से सद्भावना जताने का ।2।
बेचारा आम आदमी हर जगह बस एक प्रार्थी है ,
कहीं कोई फेहरिस्त में नाम होकर भी नहीं है उसका ,
कभी खड़ा है लगा के कहीं पर कतार,
अच्छे दिनों का – पाँच बरस से करते हुए इंतज़ार,
साहिर की उस सुबह का – जो कभी न आई बीत गए सत्तर साल,
सम्पूर्ण क्रांति का – जो होगी एक दिन,
जिसके किसी दिन होने का है हमको चालीस सालों से विश्वास,
हम होंगे कामयाब,हम होंगे कामयाब,
भव्य राम मंदिर क्या उसके बाद ही बना पाएँगे,
इतना वायदा ज़रूर रहा कि मंदिर वहीं बनाएँगे ।3।