कहीं ज्ञान नहीं ,बस विज्ञापन हैं

 

 

कहीं ज्ञान नहीं   ,बस विज्ञापन हैं ,

खबरें नहीं रहीं , नज़रिये प्रासंगिक हैं  ,

दोस्त गायब ,पर कोनटेक्ट्स बहुत हैं फेसबुक पर ,

नेताजी का व्याख्यान नहीं होता अब   ,बस  ट्वीट देते हैं ,

भोजन भले शुद्ध न रहा ,और्गेनिक उपलब्ध है बाज़ार में ,

फेक न्यूज़ का ऐसा कहर है , सब पेड सा लगता है अखबार में ।1।

 

स्वच्छंद ज़रूर हैं अब भी ,पर आज़ाद कहाँ रहे ,

हम ग़ुलाम हो गए हैं अपने समयाभाव में ,

ब्रह्म, जीव, माया का मैटरिक्स तो अनादि काल से है,

अब ऐसा वेब बुना गया है  हमारे भावों  में  ,        (इंटरनेट)

आभासी वास्तविकता (virtual reality ) में  विचरना ही सुरक्षित लगता है ,

बजाय पुराने माध्यमों के कोलाहल और भ्रष्टाचार में ।2।

 

शुक्र मनाइए योग अभी भी योग ही है ,

पतंजलि प्रोडक्ट पेटेंट नहीं हुआ है बाज़ार में  ,

और चूंकि जीवन जीने का अधिकार अभी भी सबको है ,

तो उसमें भोग की कुछ गुंजाइश बाकी है,

प्रेम, नशा ,संपत्ति,परिवार  अब भी जीवन के आधार हैं ,

ज्यादा कुछ रखा नहीं है इस इंटरनेट के व्यवहार में ।3।

 

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  1. Aakash Deep says:

    Very nice

    Like

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