महकमा बन गया है एक गुरुत्वहीन पाख़ाना ,
जहाँ मल हवा में उछल रहा है ,तैर रहा है,
पंखों से टकरा टकरा कर छिटक जाता है ,
छत-दीवारों पर मॉडर्न आर्ट की तरह चिपक गया है ।1।
गुरुत्वाकर्षण नहीं रहा अब ,
बस बड़े-बड़े गुरु बैठे हैं ,
फाइलों पर रख-रख कर मल,
एक-दूजे पर उड़ेल रहे हैं ।2।
होते अगर कोई नत्थू गैरे ,
कीट-पतंगे छोटे मोटे ,
खा रहे होते जेल की रोटी ,
खिंच गयी होती बोटी-बोटी ।3।
इनकी बात अलग है इनकी
चमड़ी खाकी, रक्त विषैला,
पाखाने में बैठे हों नंगे
लगे घोड़ी पर दूल्हा नया-नवेला ।4।
बड़ा वीभत्स नज़ारा होगा,
मल में सना हर रणबांकुरा होगा,
अंग-भंग देखे ,रक्तरंजित देखे,
प्रजा का कब मोहभंग होगा ।5।
पाखाने की कभी ढंग से सफाई नहीं होगी ,
साबित किसी फँसे की बुराई नहीं होगी ,
जिनपर दाग लगे हैं गुलाबारी में धुल जाएंगे,
पर महकमे का पुराना रुतबा न ला पाएंगे ।6।