सबेरे तीन बजे किसी तरह नींद से जागा,
मुंह-हाथ धो कर पांडाल-पांडाल भागा ,
भीड़ बहुत थी सड़कों पर,प्रदूषण,कोलाहल भी ,
बंगालियों में दारुण उत्साह था पूजो को लेकर ।4।
भीड़ के रेले माँ के दर्शन को बढ़ते जाते थे,
यह गली ,वह मोहल्ला ,यह नुक्कड़ ,वह तल्ला ,
ढूंढते- पूछते ,पूजते- बूझते ,
हर्षोल्लास से ओतप्रोत,काली-प्रेम में सराबोर ।8।
कल एक लेख पढ़ा कि यह हिन्दू त्योहार है ही नहीं ,
सिर्फ बंगालियत का इज़हार है, लोक कला का इश्तेहार ,
जूते-चप्पल पहन कर लोग टेंटों में घुस जाते हैं ,
बाहर निकल कर अंडा –मटन-मछ्ली उड़ाते हैं । 12।
सब पूजाओं में होता है आपस में मुक़ाबला ,
दुर्गा-दुर्गा में क्या संभव है स्पर्धा ?
लेफ्ट-लिब्रल जमात से अब भला कौन जिरह करे
पर कोई कैसे इनकी नफरत से भी सुलह करे ? ।16।
हर तरफ दुर्गा-दुर्गा ,शक्तिमय है बंगाल,
धर्म ही है जीवन शैली,सोच नहीं कंगाल ,
आहार में न एक विचार में यह सिमट है सकता,
ऐसा कोई तुर्रा नहीं, जो भगवा झंडे में नहीं लिपट सकता ।20।
ऐसे शाश्वत ,सनातन धर्म से क्यूँ है इतना गिला ,
कल वामपंथ को भी शरण दे सकता है यह धर्म का किला,
उन्मादियों की संकुचित सोच से भी लड़ना होगा ,
सहनशीलता का दायरा थोड़ा बड़ा करना होगा ।24।
मीट -मच्छी खाना- न खाना हिन्दू की कसौटी नहीं ,
मेरा धर्म किसी तिलकधारी की बपौती भी नहीं ,
बड़ी तन्मयता से मोबाइल को माँ के दर्शन करवाता हूँ,
पूजा की इस विधि से क्या मैं मॉडर्न बन जाता हूँ ? ।28।
चाहे कोई बनाए मूर्ती , खड़ा करे पांडाल,
फूल सजाये कोई , कमिटी मचाए बवाल ,
जो भी कहता जय माँ दुर्गे, वही बोलता जय श्रीराम,
जो फरक देखता है दोनों में , अब यहाँ पर उसका क्या काम ।32।
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