लिखो लिखो थोड़ा और लिखो
जब तक न थक जाओ लिखो
न चुक जाओ तब तक अनवरत लिखो
थोड़ा पढ़ लो अगर जो मन करे
पढ़ो साहित्य पढ़ो गद्य ,पद्य पढ़ो
रेपोरताज मे पढ़ने लायक क्या रखा है
उसमे कौन सा रस भरा है ?
पर्चे ,पत्रों में साहित्य नहीं
केवल तुकबंदी का सिलसिला है
व्यापारिक लेखों से बाज़ार भरा है
किसी अखबार में पत्रकार नहीं लगना है ,
फिल्मों का समीक्षाकार नहीं बनना है ,
अगर छुपा हुआ है अंदर कलाकार
तो उस लेखक को देना है रोजगार
अगर भरे हैं भावों से
तो उन भावों देना है बहाव ।
बस लिखते रहो लिखते रहो
रास्ते अपने आप निकल आएंगे,
जो चलते रहे लक्ष्य की ओर
पन्ने अपने आप भर जाएंगे
सफलता लोकप्रियता कोई मानक नहीं
मन के उद्गार अवश्य निकल जाएंगे ।
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