हर शाम एक सवाल लेकर आती है,
कुछ ही रातें उनका जवाब दे पाती है,
कभी तो वे सवाल समझ नहीं पातीं,
कभी ठीक से जवाब नहीं बनता ,
असली खेल इन सवालों को बूझने भर का ही है !
जवाब न देना भी एक वाजिब जवाब है । 1।
रात्रि को होने वाली भोर का सहारा है ,
सवेरा कभी खाली हाथ नहीं आता,
कभी उम्मीद ,कभी विश्वास,
कभी काम , य इनाम का पैग़ाम ,
वह ऑफिस से लौटते हुए पापा की तरह
कोई सौगात ज़रूर साथ लेकर आता है ।2।
सुबह एक खाली पन्ना है ,श्वेत,स्वच्छ,
किसी यात्रा का शुभारंभ ,
जैसे एक नए बही की शुरुआत ,
विवाह,जन्म,गृहप्रवेश ,
जिस किसी रेलगाड़ी में बैठ जाओगे ,
गंतव्य उसी के टाइम टेबल पर निर्भर है ।3।
शाम का तो प्रश्न चिह्नन लगाना तय है ,
जैसे रात का शाम को निगल जाना,
जैसे सुबह का बांग देना ,
जैसे दोपहर में दिनचारों का भटकना ,
ये रात है जो इम्तिहान का है
शुक्र है इसे बस कट जाना होता है….