बात ऐसे भी हो सकती है
कि कहने वाला कह सके और
पूछने वाला प्रयास करे सुनने का ।3।
न तेरे खीजने से
मेरे बिचार बदलेंगे,
न मेरे चुप रहने से ही यह होगा
कि सुनने वाले नहीं समझेंगे ।7।
बात ऐसे भी हो सकती है
कि तुम सवाल न पूछो,
मैं फिर भी सारे जवाब दे दूँ ,
पर जो मैं कहना नहीं चाहता,
उसे तुम पकड़ के न बैठो,
देखो बातें कहीं रुके रहीं ।13।
श्रोता सब समझ लेंगे,
मेरे मौन में,
तेरी मुस्कान में,
बोल दिये जो बोल दिये
अनबोले भी शब्दों में,
जो कुछ छुपा है फलसफा,
इशारों में जब्त हैं राज़,
समझने वाले सब समझ लेंगे,
विश्वास रखो यह जनता है,
इन्हें सब पता है,
बात ऐसे भी हो सकती है।26।
मैं क्यूँ रहूँगा चुप अगर तुम बोलने दो ?
अपनी कहने ही तो आया हूँ,
कुछ छूट जाए तो बता देना,
कोई शंका हो तो जता देना,
वे बस मेरी जीवनी नहीं,
मेरे बिचार भी जानना चाहते हैं,
वह न तुम्हारी ललकार,
न ही मेरी यलगार
सुनने को बैठे हैं,
पारखी हैं, नौटंकी के शौकीन नहीं !
साक्षात्कार देखने को जमा हैं,
किसी हत्यारे की फांसी नहीं । (35)
तुम उतना ही पूछो,
जिससे बात आगे बढ़े,
और मैं उतना ही कहूँ,
जितना मैं जानता- मानता हूँ,
जो तुमने पूछा कि सफर कब शुरू हुआ,
अभी तो कारवां चला ही रहा है,
क्या तब से जब से सोच हुई बुलंद,
तो क्यूँ हुई बुलंद?
या तब से जब कि मैं चढ़ बैठा पोत पर ?
तो क्यूँ चढ़ बैठा ? (45)
बात ऐसे भी हो सकती है,
कि तुम पूछो कला की साधना
मैं क्यूँ और कैसे करता हूँ ?
अगर पूछने लगोगे कौन हूँ मैं
तो क्या ही कह पाऊँगा ?
कलाकर हूँ, प्रयासरत,
अभिव्यक्ति,इज़हार,एक्स्प्रेश्न
के माध्यम तलाश रहा हूँ,
स्वयं और सृष्टि को समझने के फेर मे
फसा हुआ एक बुलबुला,
नहीं जानता कोई शाश्वत सत्य
मेरा सत्य, मेरा मार्ग-केवल मेरा है ।
अंधकार, इस घोर अंधकार में
इस माचिस की लौ जितना सबेरा है। (36)
बात ऐसे भी हो सकती है
कि विवाद नहीं,संवाद हो,
कुछ उत्तर भी मिल जाएँ,
और मुझे न अवसाद हो,
न बहस हो ,न कोलाहल,
तसल्ली से वार्तालाप हो,
जो सुन रहे हैं अपनी गुफ्तगू
उन्हें मिले झलक कुछ अपनी सोच की,
कुछ हो ललक नया जानने -खोजने की,
बात ऐसे भी हो सकती है,
मुझे नीचा, स्वयं को ऊंचा
साबित करने का न तुझपर दबाव हो,
सौहार्द बना रहे,
मज़े में बात हो,
हम दोनों की बस यही साध हो ।59।
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